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________________ पाश्व - धरणेन्द्र : बुद्ध-मुचुम्लिद : नाग का सम्बन्ध शिव और विष्णु के साथ प्रसिद्ध है । विष्णु की शैय्या अनन्त नाग की बनी हुई है। बालकृष्ण की वर्षा से रक्षा शेषनाग ने की थी । लेकिन नाग का बुद्ध और पार्श्व के साथ जो संबंध रहा है वह तुलनीय है । 2 ९१ पाश्व-धरणेन्द्र : श्रीपार्श्व, एक बार, तापसों वटवृक्ष के नीचे ध्यानस्थ भव में मेघमाली नामक देव दीक्षा लेने के पश्चात् विभिन्न स्थानों पर विहार करते हुए के एक आश्रम के समीप, सूर्यास्त के समय कुएँ के समीपस्थ खड़े होते हैं । वहाँ उनके प्रथम भव का सहोदर कमठ जो इस होता है, पार्श्व को तपस्या करते देख, पहचान कर, उन पर सिंह, हाथी, गेछ, सर्प व बिच्छु आदि छोड़ कर भाँति-भांति के उपद्रवों से यातना पहुँचाता है । तत्पश्चात् पार्श्व को अभिग तपस्या में लीन देख उन्हें डुबो देने के निश्चय से वह लगातार सात दिनों तक गंभीर गर्जना के साथ घनघोर वृष्टि उत्पन्न करता है। पार्श्व के नासाम्र तक पानी आ जाता है पर पार्श्व विचलित नहीं होते हैं । मेघमाली के इस उपद्रव का ज्ञान नागराज धरणेन्द्र को अपना आसन कंपित होते ही होता है । अतः वे पार्श्व की रक्षा के हेतु अपनी पटरानी पद्मावती के साथ आ उपस्थित होते हैं । नागराज धरणेन्द्र अपने सात फणों का छत्र बना कर श्रीपार्श्व की वर्षा से रक्षा करते हैं अन्त में कमंठ भी अपने दुष्कर्म को समझ पार्श्व की शरण में आता है । 3 । बुद्ध-मुचुलिन्द : बोधि प्राप्ति के पश्चात् सात दिन वडवृक्ष से उठ कर मुचुलिन्द नामक वृक्ष ने सात दिन तक एकासन रूप से बैठ व्यतीत होने पर, बुद्ध भगवान अजपाल नामक की ओर गये । वहाँ मुचुलिन्द वृक्ष की जड़ में बुद्ध कर मुक्ति के सुख का अनुभव किया । 1. श्रीमद्भागवत, Vol. II. Pub. V. Ramaswamy Sastrulu & Sons, Madras, S 1937, दशमस्कन्ध, अ० ३, श्लो० ४९-५१, पृ० १२१३. 2. "The Story of the protection of Parsva by the Naga king really corresponds with the unmotivated story of the protection of Buddha from a storm by a naga after enlightenment." -The life of Buddha, E.J. Thomas, New York, 1931, p. 232. Jain Education International 3. (अ) Philosophies of India, Heinrich Zimmer, ed. by Joseph Campbell, New York, 1957, pages 201-202. ( ब ) भगवान पार्श्व, देवेन्द्रमुनि, पृ. १००-१०२ (स) श्रीपार्श्वनाथचरित, पद्मसुन्दरसूरि षष्ठ सर्ग, श्लो. ५३ - ५४ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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