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________________ ॐ ह्रीं वर्द्धमान देवाय ॐ ह्रीं हैं वा थंभणे वा मोहण वा सव्वजीवसत्ताणु आवराजिदा भवदं मे रक्ख रक्ख वर्द्धमानाय ॐ ह्रीं हैं ॐ ह्रीं हैं Jain Education International 2010_05 | वर्द्धमानाय वर्द्धमानाय वाय ऋद्धि- वृद्धि-सम्पत्ति-विधायकाय वर्द्धमानाय स्वाहा तथ दधन पफ ब भ म य र ल व श ष सह / स्वाहा स्वाहा स्वाहा સ | वर्द्धमानाय ह्रीं हैं ॐ ह्रीं हैं स्वाहा कखगघङचञटठडढण तथ दधन ही हुआ यह । 19112 परमौदारिक शरीरस्थिाय शान्तिं पुष्टिं कुरु ॐ णमो भयवदो लृ एट अ अ: स्वाहा अअः रा ऐ ओ औ नट वह बल । अआइईउऊ ॐ ह्रीं हैं वर्द्धमानाय वर्द्धमानाय ॐ ह्रीं हैं ( वर्द्धमानाय वर्द्धमान यन्त्र स्वाहा ॐ ह्रीं हैं स्वाहा मष्ठिने नमः : सर्व साधुपरॐ ह्रीं हैं आयास पायाल लोयाण भूयाणं जूए वा विवादे वा रयणंगणे वा शंभणे वा मोहणे For Private & Personal Use Only ॐ ह्रीं हैं सिध्दाय नमः स्वाहा स्वाहा नमः 191167 नमः ॐ ह्रीं हैं आचायाय उपाध्यायाय ॐ ह्रीं हैं www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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