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लगभग एक लाख प्रतिमाएँ समस्त भारत में स्थान-स्थान पर पहुँचाई गई मिलती है । उक्त पाषाण की मूर्तियों के सिवाय धातु की मूर्तियाँ भी प्राचीन पाई जाती हैं । भगवान् पार्श्वनाथ प्रतिमा प्रिंस ऑफ वेल्स संग्रहालय बम्बई में है, जो ईसा पूर्व १०० वर्ष की मौर्यकालीन है । गुप्तकाल की अनुमानित श्री आदिनाथ प्रतिमा चीता (बिहार) से प्राप्त हुई पटना के संग्रहालय में है । श्री बाहुबलि प्रतिमा बम्बई के उक्त संग्रहालय में ब्रोंज धातु की है। बादामी गुफा की बाहुबलि प्रतिमा लगभग सातवीं शती की साढ़े सात फुट ऊँची पद्मपुराणकार द्वारा उल्लिखित हैं ( प. प्र. ४, ७६-७७) एलोरा के जैन शिलालेख मंदिरों में ८ वीं शती की प्रतिमा उत्कीर्ण है । तीसरी प्रतिमा देवगढ़ शांतिनाथ मंदिर में ई. ८६२ की है | श्रवणबेलगोला की प्रतिमा सर्वविदित है । यह महामंत्री चामुंडराय ने १०-११ वीं शती में प्रतिष्ठित कराई थी। कारकल, बेलूर आदि में भी बाहुबलि प्रतिमाएँ हैं ।
उपलब्ध प्रतिष्ठा ग्रन्थ
१. विक्रम १२ वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में आचार्य वसुनन्दि हुए हैं । ये आचार्य नयनन्दि के प्रशिष्य और आचार्य नेमिचन्द्र के शिष्य थे। इनका उपासकाध्ययन-श्रावकाचार प्राकृत भाषा में भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित हो चुका है। उसी के अन्तर्गत संक्षिप्त प्रतिष्ठा विधान संस्कृत भाषा में प्रकाशित है ।
२. आचार्य कुन्दकुन्द के शिष्य श्री जयसेन (वसुविन्दु) आचार्य ने दक्षिण कोकण देशस्थ रत्नगिरि शिखर पर ललाट नृप द्वारा निर्मापित चैत्य की प्रतिष्ठा हेतु दो दिन में प्रतिष्ठा पाठ की रचना की थी। इ मुद्रित ग्रन्थ का उत्तर प्रांत में प्रचार है ।
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३. पंडित आशाधरजी ने विक्रम सं. १२८५ में परमार नरेश देवपाल के राज्यकाल में नलकच्छपुर (वर्तमान नालछा ) के नेमिनाथ चैत्यालय में प्रतिष्ठा - सारोद्धार ग्रन्थ की रचना आश्विन शुक्ला १५ को पूर्ण की थी। इस मुद्रित ग्रन्थ का अधिक प्रचार है ।
४. प्रतिष्ठा - तिलक ग्रन्थ श्री नेमिचन्द्र देव की रचना है । ये ब्राह्मण कुलोत्पन्न ब्रह्मदेव के पौत्र और देवेन्द्र के पुत्र थे । इनके गुरु अभयचन्द एवं विजयकीर्ति थे । इस मुद्रित ग्रन्थ का प्रचार दक्षिण प्रांत में है ।
५. हस्तिमल्ल का प्रतिष्ठा पाठ, अय्यपार्य का जिनेन्द्र कल्याणाभ्युदय, माघनंदि का प्रतिष्ठाकल्प, वादि कुमुद चन्द्र का प्रतिष्ठा पाठ (जिनसंहिता), ब्रह्मसूरि का प्रतिष्ठा तिलक, अकलंक भट्टारक का प्रतिष्ठाकल्प, भट्टारक राजकीर्ति का प्रतिष्ठादर्श, नरेन्द्रसेन का प्रतिष्ठा दीपक आदि ग्रन्थ हस्तलिखित लघुकाय, सरस्वती भवनों में उपलब्ध हैं ।
अन्य तीर्थंकरों की प्रतिष्ठा में विधिनायक प्रतिमा का परिचय
भगवान् नेमिनाथ
सौराष्ट्र में शौर्यपुर के महाराज (अंधकवृष्टि के दश पुत्रों में सबसे बड़े) समुद्रविजय की महारानी शिवादेवी के गर्भ में कार्तिक सुदी ६ को आये और श्रावण सुदी ६ को जन्म हुआ । श्यामवर्ण, काश्यप गोत्र, १००० वर्ष की आयु, १० धनुष का शरीर । समुद्रविजय के सबसे छोटे भ्राता वसुदेव से श्रीकृष्ण और
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[ प्रतिष्ठा-प्रदीप ]
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