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पोटनूरमलै (तमिलनाडु) में करीब २००० वर्ष पूर्व संस्थापित
आचार्य श्री कुन्दकुन्द के चरणचिन्ह
यह स्थान शहर से करीब १२५ कि.मी. दूरी पर एक छोटे से पहाड़ पर स्थित है। सन् १९८८-८९ में आचार्य श्री कुन्दकुन्द को हुवे दो हजार वर्ष पूरे हुए हैं। वे इस युग के महान आध्यात्मिक संत थे । उनके एलाचार्य, गृद्धपिच्छाचार्य, पद्मनंदी और वक्रग्रीवाचार्य यह भी नाम थे। ११ वर्ष की अवस्था में ही दिगम्बरी दीक्षा धारण कर वे ९५ वर्ष तक आध्यात्मिक विचारों की पवित्र गंगा इस देश में बहाते रहे | पोन्नूरमलै यह स्थान उनकी तपोभूमि रही है | समयसार, प्रवचनसार, नियमसार, पंचास्तिकाय, रयणसार मूलाचार आदि महान आध्यात्मिक ग्रंथों की रचना करके उन्होंने भारतीय साहित्य को समृद्ध किया है। वे तिरुवल्लुवर नाम से भी जाने जाते थे। उनका तिरुक्कुरल यह नीतिग्रंथ विश्वविख्यात हो गया है । यह ग्रंथ विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवादित है। [प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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