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प्रतिष्ठा प्रदीप
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भगवान की दृष्टि और स्थान : भगवान् (मूर्ति) की दृष्टि द्वार के किस भाग पर टिकी है, यह देखना प्रतिष्ठाचार्य का आवश्यक कर्तव्य है। यदि मूर्ति की दृष्टि का केन्द्रस्थान शास्त्रानुकूल नहीं रखा गया, तो इसका परिणाम शुभ नहीं होगा। यह उस मन्दिर प्रतिष्ठाकारक और उस नगर के लिए अत्यन्त हानिकारक होगा। इसे स्पष्ट करें, तो कहना होगा कि मन्दिर प्रतिष्ठाकारक और उस नगर में कभी शान्ति और समृद्धि के दर्शन नहीं होंगे। सिद्ध क्षेत्र चौरासी, कल्याणक क्षेत्र हस्तिानापुर और अतिशय क्षेत्र श्रीनगर गढ़वाल) के मन्दिर इस बात के उदाहरण हैं। पहले इन मन्दिरों की दशा शोचनीय थी। ये आर्थिक दृष्टि से बहुत पिछड़े हुए थे। जब हम विहार करते हुए इन क्षेत्रों पर पहुंचे, तो वहाँ के पदाधिकारियों ने हमारा ध्यान इस ओर आकर्षित किया। हमारे सुझाव पर उन्होंने दरवाजा बदला तथा नाप तौलकर ऐसा दरवाजा लगवाया कि जिसकी वीतराग आय पर भगवान की दृष्टि पड़ने लगी। तबसे वहाँ और नगर में आर्थिक समृद्धि का दौर शुरू हो गया। इसके लिए स्पष्ट उल्लेख है कि-'आयमागर्मजेद्द्वार मष्टममूर्ध्वतस्त्यजेत् । सप्तमे दृष्टिवृषे सिंहे ध्वजे च गजे शुभा ॥ -प्रसाद मण्डन ४॥५.पृ.७३
तृतीय भाग
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