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तुम्हीं सिद्धराजं तुम्हीं मोक्षराजं । तुम्हीं तीन भूके सु ऊरध विराजं ॥ तुम्हीं वीतरागं तदपि काज सारं । तुम्ही भक्तजन भावका मल निवारं ॥११॥ करैं मोक्ष कल्याणकं भक्त भीने । फुरै भाव शुद्धं यही भाव कीने ॥ नमे हैं जजे हैं सु आनन्द धारें । शरण मंगलोत्तम तुम्हीं को विचारें ॥१२॥
दोहा परम सिद्ध चौवीस जिन, वर्तमान सुखकार ।
पूजत भजत सु भावसे, होय विघ्न निरवार || ॐ हीं चतुर्विशतिवर्तमान जिनेन्द्रेश्यो मोक्षकल्याणकेप्राप्तेभ्यो अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।
दोहा बिम्बप्रतिष्ठा हो सफल, नरनारी अघ हार । वीतराग विज्ञानमय, धर्म बढ़ो अधिकार ॥
इत्याशीर्वाद : पुष्प क्षेपें सर्वे येऽपि समाहूता जिनयज्ञमहोत्सवे ।
तान् सर्वान् संविसृजयेत भक्तिनम्रशिराः पुनः ॥ ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः अ सि आ उ सा श्री अर्हदादि परमेष्ठिनः (पूजाविधि) विसर्जनं करोमि । जः जः जः अपराध क्षमापनं भवतु । भूयात्पुनदर्शनम्।।
(आशाधर प्र. नि. २७) अन्त्य मंगल स्वस्तिस्ताज्जिनशासनाय महतां पुण्यात्मनां पंक्तये । राज्ञे स्वस्ति चतुर्विधाय बृहते संघाय यज्ञाय च । सद्धर्माय सधर्मिणऽस्तु सुकृतांभोवृष्टिरस्तु क्षणं ।
माभूयादशुभेक्षणं शुभयुजां भूयात्पुनदर्शनम् ॥ रथयात्रा या गजरथ का भी आयोजन मूलनायक विराजमान के पश्चात् होता है। अन्त में शांतियज्ञ व धन्यवाद कार्यक्रम संपन्न किया जावे।
मंगल कामना कल्याणमस्तु कमलाभिमुखी सदास्तु, दीर्घायुरस्तु कुलगोत्र धनं सदास्तु । आरोग्यमस्तु अभिमतार्थ फलाप्तिरस्तु, भद्रं सदास्तु जिनपुंगवभक्तिरस्तु ||
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[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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