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जन्माभिषेक व तत् सम्बन्धी क्रियायें
पांडुक शिला को - ॐ ह्रीं श्रीं श्रीं भूः स्वाहा' मन्त्र द्वारा जल से शुद्ध करें । हाथी पर उसकी तीन प्रदक्षिणा देकर उस पर से इन्द्र भगवान् को पाण्डुक शिला पर लावें ।
ॐ ह्रीं अर्हं क्ष्मं ठः ठः स्वाहा । मन्त्र से पीठ स्थापन करें ।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्रः नमोऽर्हते भगवते श्रीमते पवित्रजलेन पीठ प्रक्षालनं करोमि स्वाहा । मन्त्र से पीठ प्रक्षालन करें।
ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं श्रीलेखनं करोमि (श्रीलेखन)
ॐ नमोऽर्हते केवलिने परम योगिने अनंत विशुद्ध परिणाम परिस्फुरत् शुक्ल ध्यानाग्नि निर्दग्ध कर्म बीजाय प्राप्तानंत चतुष्ट्याय सौम्याय शांताय मंगलाय वरदाय अष्टादश दोष रहिताय स्वाहा ।
ॐ त्रैलोक्योद्धरण धीरं जिनेन्द्रं भद्रासने उपवेशयामि स्वाहा ।
(भद्रासने प्रतिमा स्थापनम् )
अस्मिन् चित्रे जन्म-कल्याणकमारोपयामि | (पुष्पांजलिः) अभिषेक मन्त्र
ॐ क्षीरसमुद्र वारि पूरितेन मणिमय मंगल कलशेन भगवदर्हत्प्रतिकृति स्नापयामः । ॐ श्रीं ह्रीं हं वं मं हं सं तं पं झवीं क्ष्वीं हं सः नमोऽर्हते स्वाहा ।
पहले १००८ कलशों से इन्द्रगण अभिषेक कर लेवें । पश्चात् अन्य पुरुष शुद्ध धोती, दुपट्टा पहनकर अभिषेक करें | अभिषेक का जल अधिक समय का होने पर छान लेना चाहिये । अभिषेक पश्चात् पर्दा लगाकर इन्द्राणी द्वारा प्रतिमा को 'ॐ झं वं हवः पः झवीं क्ष्वीं स्वाहा । मन्त्र से चन्दन लेप करावें ।
ॐ ह्रीं जिनांग विविध वस्त्राभरणैः विभूषयामः । (वस्त्राभूषण पहनावें)
ॐ ह्रीं श्रीं तीर्थंकरांगुष्ठेऽमृतं स्थापयामि । (दुग्ध द्वारा अमृत स्थापन) दक्षिण पाद में वृषभ चिन्ह देखकर वृषभ चिन्ह प्रकट करें । आँखों में अंजन, कंकण बंधन । कर्णबध । आरती । (पर्दा खोल देवें) चाहें तो चौबीसी मण्डल मांडकर व यंत्र विराजमान कर जन्म कल्याणक पूजा इन्द्रों से करा लेवें । पश्चात् ऐरावत पर प्रतिमा विराजमान कर वापस शोभायात्रा मण्डप में लावें । मण्डप में वेदी पर प्रतिमा विराजमान कर इन्द्रों द्वारा तांडव नृत्य करावें । पुनः यहीं जन्म कल्याणक पूजा, यंत्र विराजमान कर चौबीस मण्डल मांडकर करावें ।
जयसेन प्रतिष्ठा पाठ, पृष्ठ २५९ में संस्कृत भाषा की हिन्दी का भाव इस प्रकार है कि माता-पिता की गोद अर्थात् मंडप की वेदी पर भद्रासन में प्रतिमा विराजमान करें । नोट- मण्डप में अन्य प्रतिमाओं पर विधि नायक के समान समस्त विधि करें ।
[ प्रतिष्ठा-प्रदीप ]
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