________________
२२
पुरातनप्रबन्धसङ्ग्रह।
२
| 영성 영성 영성 영성 엉 엉 엉 엉 엉 엉 엉 성 성 정 영성 영
"
७२ गूढमहाकालोत्पत्तिवृत्तान्त ७६+ जगद्देवदानवृत्तान्त
६१९८१ ७७ वराहमिहिरवृत्तान्त
६२०७ ७८ वाग्भटवैद्यवृत्तान्त
६२१७ ७९ वीसलदेवचक्षुपीडावृत्तान्त ।
६१८२ ८० कुमारपाल-कालिंगीयकवृत्तान्त । ८१ , द्विकलत्रव्यवहारिवृत्तान्त ८२ सोमेश्वरकृत वस्तुपालप्रशंसा ।
६१६१० . 'सातवाहनसम्बन्धिगाथावृत्तान्त ८३ जलोदररोगि-आचार्यवृत्तान्त
६२४८ ८४ शिवतपोधनकवितावृत्तान्त ८५ वस्तुपालअन्त्ययात्रावृत्तान्त
६१७५ ८६ कुमारपालशकुनप्राप्तिवृत्तान्त
६८८ ८७ कुमारपालराज्यनिवेशवृत्तान्त स, २१४
६९१ ८८ कुमारपाल-कडीतलारक्षवृत्तान्त ८९ कुलचन्द्रक्षपणकवृत्तान्त ९० कुष्ठरोगि-आचार्यवृत्तान्त ९१ सामुद्रिकशास्त्रवेदिवृत्तान्त
१४ ९२ लाखाकफुल्लडवृत्तान्त ९३ वनराजजन्मवृत्तान्त ९४ जयसिंहकृतधाराभंगवृत्तान्त ९५ , त्रिभुवनपालघातवृत्तान्त ९६ कुमारपालवर्णसिद्धीच्छावृत्तान्त रस ,, १ ७
६९७ , सिद्धराजगुणतुलनावृत्तान्त , १ ९
६९८ ९७ अम्बाकारितपद्यावृत्तान्त . स. ,, १११ ९८ अजयपाल-कपर्दिमंत्रीवृत्तान्त स ,, १ १३
६१०६ वारं वारं पदत्रयमिति पठ्यमाने दरिद्रोपद्रुतेनैकेन पण्डितेन खात्रपातं कुर्वता इति पठितम्
"संमीलने नयनयोर्निखिलं न किश्चित् ।"
इत्युक्ते राजा धीरां दत्त्वा प्रसादितः॥७२॥ + मूल आदर्शमें ७३, ७४ और ७५ ये क्रमाङ्क छोड दिये गये हैं और ७२ के बाद ७६ का अंक दिया हुआ है। इसका कारण कुछ समझमें नहीं आता । क्या भूलसे ऐसा किया गया है या अन्य किसी विचारसे सो अस्पष्ट है।
पृ. ८५ पर जो जगद्देव प्रबन्ध दिया हुआ है उसकी प्रथम कण्डिका मात्र ही [पंक्ति १० से १६ तक] इस क्रमांक वाले वृत्तान्तका भाग है। शेष ३ कण्डिकायें ऊपर निर्दिष्ट २५, २६, २७, क्रमांक वाले वृत्तान्तकी अंशभूत हैं।
A पृ. ७४ परकी पंक्ति १८ से २६ तकका अंश । 1 इन गाथाओंके साथ कोई क्रमांक नहीं दिया गया है।
2 मूलमें इसका क्रमांक भी ९७ ही लिखा हुआ है और यह गलती आगेके सभी क्रमांकोंके साथ चलती रही है । इसी तरह आगे १.१ और ११६ क्रमांक भी दो दो दफा लिखे हुए हैं।
GG « Ransonants
* * * * * * * * * * * * * * * * * * * s www
६२४९
६२१
६७३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org