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प्रास्ताविक वक्तव्य।
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져 성 성 성 성 영성 정 정 경 경영
११२
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४२ वराहमिहिरवृत्तान्त
स° , २ १३
६२०७ ४३ *... ... ... ४४ रामवनवासफल भक्षणवार्ता ४५ घृतवसतिकाउत्पत्तिप्रबन्ध ४६ हेमसूरि-वादि-शब्दच्छलवृत्तान्त ४७ यशोधनव्यवहारिवृत्तान्त
६२४३ ११२ ४८ मयणसाहारनासाच्छेदनवृत्तान्त
६९८० ४९ सारंगदेवप्रधानवृत्तान्त
६२४१ ५० सिद्धि-बुद्धियोगिनीवृत्तान्त
६७१ ५१ सिद्धराज-सान्तूमंत्रीवृत्तान्त ५२ उन्मत्तप्रधानवृत्तान्त
स° ,, २१४
६२४४
११३ ५३ मित्रचतुष्कवार्ता
६२४५ ५४-६१ [ विनष्टपत्रांक १३४ तमे नष्टा एताः सर्वाः वार्ताः] ६२ मुंज-भोज-बन्धमोक्षवृत्तान्त x स. १३५ १ ५ ६३ भाग्यविषयकराजिलदृष्टान्त स. १३५ १ ७
६२४६ ६४ भोजराज-दामरवृत्तान्त स° , २ २
२१ ६५ वाक्पतिराजकविवृत्तान्त
स° ,, २४
२४० ६६ रात्र्यन्धकथानक
६२४७ ६७ व्यवहारिसुताकथानक ६८ चातुर्थिकज्वरवृत्तान्त
स, २१४ ६९ काचमयपेटीवृत्तान्त
स° , २१६ ७० राजपुत्रीकथानक ७१ भोजराज-खात्रपातकवृत्तान्त** स०, १५
* सिर्फ आधी पंक्तिमें इस ४३ ३ प्रबन्धकी सूचना है। इसमें कौनसी वार्ता या कथाका सूचन है सो स्पष्ट ज्ञात नहीं होता। जो आधी पंक्ति लिखी हुई है वह इस प्रकार है
"विवाहयित्वा यः कन्यां०॥१॥ इति हेतोर्जलधिभुक्तराजपत्नीसुतसपादलक्षद्वीपार्पणप्रबन्धः॥ छ॥४३॥" 1 प्रस्तुत ग्रन्थमें उपयोगी न होनेसे इस वार्ताको भी हमने ग्रन्थान्तर्गत नहीं किया। यह इस प्रकार है
श्रीचित्रकूटपर्वते प्रथमवनवासे सौमित्रिणा वने भ्रान्त्वा वनफलान्यानीय श्रीरामदेवाने मुक्तानि । तदा फलानि दृष्ट्वा देवेन निगदितम्
पृथिव्यामन्नपूर्णायां वयं च फलकांक्षिणः ।
सौमित्रे! नूनमस्माभिः पात्रे दत्तं पुरा नहि ॥४॥ x इस वृत्तान्तका प्रारम्भका कुछ कथन, विनष्ट पत्र १३४ में रह गया है इसलिये इसके प्रारंभमें.........ऐसी खण्डित भाग सूचक बिंदुराजि दी गई है।
** भ्रमवश, यह वृत्तांत, मूल संग्रहमें मुद्रित होनेसे रह गया है, इसलिये, इसे यहां पर उद्धृत कर दिया जाता हैअन्यदा श्रीभोजेन निशि सौधोपरिस्थितेन निजराज्यस्य स्फातिं विलोक्य गर्वितेन प्रोक्तमिति
चेतोहरा युवतयः स्वजनोऽनुकूल: - सद्वान्धवाः प्रणयगर्भ [गिरश्च भृत्याः। गर्जन्ति दन्तिनिवहास्तरलास्तुरङ्गा......]
성 경 경영성 정성
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