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________________ प्रास्ताविक वक्तव्य । इससे ज्ञात होता है कि इस पोथीमें, इन पन्नोंके पहले, १२५ पन्ने और अवश्य थे। लेकिन जब तक वे कहींसे मिल न आवें तब तक, उन पन्नों में क्या लिखा हुआ था उसके जाननेका कोई उपाय नहीं है। ११. G संग्रहका आन्तर परिचय .. यह संग्रह, ऊपरके PB. B..संग्रहोंके जैसा कोई सुसंकलित या सुग्रथित ग्रन्थस्वरूप नहीं है। यह एक प्रकारका, पुरानी कथा वार्ता विषयक संक्षिप्त टिप्पणोंका प्रकीर्ण संग्रह मात्र है, जो किसी विद्वान्ने अन्यान्य ग्रन्थों में पढ कर या अन्य जनोंके मुखसे सुन कर निजकी स्मृतिके लिये लिख लिया है । इसमें, प्रारम्भमें जो विक्रमादित्य प्रबन्ध लिखा हुआ है वह एक मात्र किसी पुरातन लिखित-प्रबन्धकी अनुलिपि-रूप है; और बाकी सब इस संग्रहके लिपिकर्ताका स्वयं किया हुआ संक्षिप्त और अव्यवस्थित संचयन है । इसमें, विक्रमादित्य प्रबन्धको छोड कर कोई १३५-३६ कथा-वार्ताओंका संचय है। इसमें न किसी प्रकारका कोई क्रम है, न पूर्वापरका कोई सम्बन्ध है; न भाषाकी संस्कारिता है, न वर्णनकी व्यवस्थितता है । एक ही व्यक्तिके विषयकी कोई वार्ता कहीं लिखी हुई है और कोई कहीं । इनको कुछ व्यवस्थित रूप देनेके लिये हमने इन सबको अलग छांट छांट कर, प्रस्तुत पुस्तकमें, प्रबन्धचिन्तामणिगत विषयवर्णनके क्रममें संकलित की हैं । जैसे कि सिद्धराजके साथ सम्बन्ध रखनेवाली सब बातें सिद्धराजके वर्णनप्रसंगमें एकत्रित दे दी हैं और वस्तुपालके इतिवृत्तके साथ सम्बन्ध रखनेवाली बातें वस्तुपालके प्रबन्धके साथ प्रथित कर दी हैं। वैसे ही प्रकीर्ण या फुटकर जो दृष्टान्तादि हैं उन सबको अवशिष्ट प्रकरणके रूपमें एक जगह संकलित कर दिया है (देखो, पृ. ११२ से ११५)। ...इस संग्रहमें ये सब कथा-वार्ताएं किस क्रममें लिखी हुई है उसका यथार्थ बोध होनेके लिये, P. B. आदि संग्रहोंकी सूचिके मुताबिक इसकी संपूर्ण सूचि भी यहां पर, उसी तरह विस्तारके साथ दी जाती है। G संज्ञक प्रतिमें लिखित प्रकरणानुक्रम प्रस्तुत पुस्तकमें मुद्रित क्रम प्रबन्धनाम : पत्र. पृष्ठि. पंक्ति प्रकरणांक पत्रांक विक्रमार्कप्रबन्ध प्राय १२६ १ १ स. १२७ १ १४ ६११ विक्रमादित्यप्रबन्ध स० १२८ १ १० ६१२ १ जयसिंहदेवसभाक्षोभवृत्तान्त । ६७२ २ सभाक्षोभविषयक अन्यवृत्तान्त - ६२५२ ३ जीव-इन्द्रियसंवादवृत्तान्त* ४ गूर्जरविद्वत्ताविषयक डामर-भोजसंवाद स, २ ५ अनुपमाकारितनन्दीश्वरप्रासादकथा ६ भोजराज-सिद्धरसवर्णनवृत्तान्त ६४३ ७ हेमसूरिमातामरणवृत्तान्त ८ वस्तुपाल-नोडासइद धनवर्णन स, ११० १९५८ ९ पृथ्वीराजमृत्युवृत्तान्त स , २ २ $२०१ १. देवेन्द्रसूरि-कुमारपालवृत्तान्त स०, २६ ६१०१ + विक्रमविषयक इन दोनों प्रबन्धोंके लिये इस संग्रहमें क्रमसूचक संख्यांक नहीं दिये गये हैं। इसके आगेके सब प्रकरणोंके साथ १. २. ३. ४. आदि क्रमांक बराबर दिये हुए हैं। इससे मालूम होता है कि ये दोनों प्रबन्ध किसी पुरातनकृति के अनुलिपि मात्र हैं, और बाकीका सब लिखान, इस संग्रहके लेखकका निजका संकलन है। . * इस कथाका विषय आध्यात्मिक हो कर, प्रस्तुत ग्रन्थ के विषयके साथ कोई सम्बन्ध नहीं रखता । इसलिये हमने इसको मूलमें प्रविष्ट नहीं की, लेकिन संग्रहकी दृष्टि से टिप्पनीके परिशिष्टके रूप में पृथक् दे दी है। प्रा० १२७ १ १५ २. * स , १ स , ه ه ه ه ه ل * * * 씡쑁핑 ہ * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002629
Book TitlePuratana Prabandha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1936
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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