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पुरातनप्रबन्धसङ्ग्रह
११०
३० वलभीभंगप्रबन्ध
प्रा० २६...२... २
स० २७...१...१० ३१ न्यायविषयक यशोवर्मनृप प्रबन्ध{प्रा०
स० २७...२...२
५७ ६२३२ १०७-१०८ ३२ लाखणराउल प्रबन्ध
प्रा० २७...२...३ स० २८...१... ९
२२ ६२२५-२२७ १०१-१०२ ३३ चित्रकूटोत्पत्ति प्रबन्ध
प्रा० २८...१... ९ स० २८...२...११ ५३ ६२२८
१०३ ३४ परोपकारविषयक उदाहरण
प्रा. २८...२...११ एस० २८...२...१८
६० ६२३६ ३५ उद्यमविषयक उदाहरण
प्रा. २८...२...१८ स. २९...१... ५
६१ ६२३७
प्रा. २९...१... ५ ३६ दानविषयक उदाहरण
स० २९...१...१५ ६२ ६२३८
१११ ३७ अम्बुचीच नृप प्रबन्ध
प्रा. २९.......१५ स०
१०८ ४ ६२३४
२९...२... ४ ३८ कुमारपालराज्यप्राप्ति प्रबन्ध ।
प्रा० २९...२...४
१६७९-८०
स० ३०...१...१५ ३९ कर्णवाराविषयक उदाहरण
प्रा० ३०...१...१५
६३ ६२३९ १११-११२
स० ३०...२...११ ४. सोनलवाक्यानि'
प्रा० ३०...२...११
६६४
स० ३०...२...१७ - पुष्पिकालेखात्मक गाथाद्वय
, , पंक्तिय ___इस प्रकार ये ४० प्रबन्ध इस संग्रहमें संगृहीत हैं। इस सूचीके अवलोकनसे ज्ञात होता है कि प्रथमके दो प्रबन्ध, राजशेखर सूरिके प्रबन्धकोशमेंसे लिख लिये गये हैं, और ३० वां प्रबन्ध, सम्भवतः मेरुतुङ्ग सूरिके प्रबन्धचिन्तामणि प्रन्थमेंसे नकल किया हुआ है। इनके सिवा, कुमारपाल और विक्रमचरित्रके सम्बन्धवाले कुछ प्रकरण, इसमें ऐसे हैं जिनका प्रबन्धकोशगत तत्तत् प्रकरणोंके साथ बहुत घनिष्ठ साम्य दिखाई देता है। विशेष करके निम्न सूचित प्रकरण तुलना करने योग्य हैं
पुरातनप्रबन्धसंग्रह
प्रबन्धकोश कुमारपालप्रबन्धान्तर्गत प्रकरण
६८३ विक्रमचरितान्तर्गत प्रकरण
६१२
६९९ ये प्रकरण इन दोनों संग्रहोंमें, शब्द और अर्थ दोनों प्रकारसे, प्रायः समान प्रतीत होते हैं, लेकिन हैं ये भिन्न
6 यह प्रबन्ध, प्रबन्धचिन्तामणिके, पृष्ठ १०७-९ पर मुद्रित, प्रकरणांक २०२-२०३ वाले इसी नामके प्रबन्धके साथ शब्दशः मिलता है और बहुत करके उसी प्रन्थमेंसे यह नकल किया गया है-अतः हमने इसे यहां पुनः मुद्रित करना निरर्थक समझा है।
7 सिद्धराज जयसिंहके इतिहासके साथ सम्बन्ध रखनेवाले सोनलदेवीके ये वाक्य, जो गूजरात और सौराष्ट्र में, लोक गीतके रूपमें खूब प्रसिद्ध हैं और जिनके शब्दोंमें सिद्धराजके जीवनकी, घर घर गाई जानेवाली एक इतिहासानुल्लिखित, कलंकित कथा ओतप्रोत हो रही है, विना किसी विशेषोल्लेखके इस प्रतिमें, अन्तमें, लिखे हुए मिलते हैं। हमने इनको, सिद्धराजके समयके प्रकरणोंके अन्तमें, पृष्ठ ३४-पंक्ति ३० पर, एक गौण प्रकरणके ढंगसे, क्रमांक ६४ के नीचे, मुद्रित किये हैं।
8 प्रस्तुत प्रन्थके पृष्ठ १३६ पर, प्रथम जो दो प्राकृत गाथाएं मुद्रित हैं, वे इस प्रतिमें, पत्र ३० की पहली पूंठी (पृष्टि-पार्श्व) पर, सबसे नीचेकी पंक्तिमें लिखी हुई हैं। पंक्तिके प्रारंभमें 'x' ऐसा चिह्न दिया हुआ है जिसका अर्थ होता है, कि यह पंक्ति, परकी किसी पंक्तिमें लिखते लिखते छूट गई अतः यहां नीचे ( हांसियेमें) लिख दी गई है। लेकिन ऊपर किस जगह और कौन पंक्किमें यह लिखनी रह गई इसका सूचक कोई चिह्न इस सारे पन्नेमें कहीं दृष्टिगोचर नहीं होता। इसकी विशेष मीमांसा आगे चल कर की है।
9 इन दो पंक्तियोंमेंसे, पहलीमें, सं० १४३० में खर्गवास प्राप्त करनेवाले किसी सावदेव सूरिका उल्लेख है। इसका पूर्वापर क्या सम्बन्ध है सो ठीक मालूम नहीं देता। दूसरी पंक्तिमें लिपिकर्ताका-जिसने इस प्रतिका कमसे कम उत्तरी हिस्सा लिख कर पूरा किया-समयादि सूचक निर्देश है । ये दोनों पंक्तियां भी प्रन्थान्तमें, पृष्ठ १३६ पर मुद्रित हैं।
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