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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग] शब्दानुक्रम ७९६ 141 यथार्थ दर्शन यव मज्झक यदुवंश यमल यशा यशोधरा यशोमती यक्ष यक्ष-दन्ड यज्ञ दत्त यज्ञशाला यादव-वंश यक्षिणी याज्ञवल्क्य युगवाहु योनिया राजकुमारी-भद्रा राजग्रह . 35 राजनीति 237 राजर्षि नमि 495 राजा उद्यन 514 राजा-प्रदेशी 394 राज-ब्रह्मदत्त 622 राजामती 372,529 राजोवाद जातक 146 रावण 157 राम पंडित 708 राम चरित 145 राम चौधरी 495 राक्षस द्वीप 233,484 रोहक कथा 465 रोहिणग्य 584 रोहिणी 619 308 583 150 164 327 112 577,579 444 469 428 676 450 211 557 503 14 444 187 107 7 450 39 39 469 454 रथनू पुर रथावती रत्नदीप रत्नजटी रत्नामा रत्नास्मव रति रजत गुहा रयणा देवी रहस्य रुक्मि रुक्मिणि रुधिर-राजा रूप-लावण्य रूप-सुसमा राज-छत्र राजकुमारी-राजीमती लंका 431 लोक 320 लोक संसार 477 लोभ 450 लवण-समुद्र 465 लेश्या 444 लेश्या-प्रकार __ 7 लक्ष्यमण कुमार 610 लक्ष्यमण मूर्छा 476 290 529 529 वनमाला 504 वरुण देव 312 वसन्तपुर 312 वृन्दावन 403 वृद्धावस्था 112 वासुदेव 439 554 709 517 377,99,401 495,460,554 Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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