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आगम और त्रिपिटक :
खिण्ड : ३
४. निर्ग्रन्थ सभी पापों के वारण में लगा रहता है।
-दीघनिकाय, सामफल सुत्त, १-२ दीघनिकाय, उदुम्बरिक सीहनाद सुत्त के अनुसार चातुर्याम इस प्रकार है : १. जीव-हिंसा न करना, न करवाना और न उसमें सहमत होना। २. चोरी न करना, न करवाना और न उसमें सहमत होना। ३. झूठ न बोलना, न बुलवाना और न उसमें सहमत होना। ४. पाँच प्रकार के काम-भोगों में प्रवृत्त न होना, न प्रवृत्त करना और न उनमें सहमत
होना।
चार द्वीप--सुमेर पर्वत के चारों ओर के चार द्वीप। पूर्व में पूर्व विदेह, पश्चिम में अपर
गोयान उत्तर में उत्तर कुरु और दक्षिण में जम्बूद्वीप । चारिका-धर्मोपदेश के लिए गमन करना। चारिका दो प्रकार की होती है- १. त्वरित
चारिका और २. अत्वरित चारिका । दूर बोधनीय मनुष्य को लक्ष्य कर उसके बोध के लिए सहसा गमन त्वरित चारिका' है और ग्राम, निगम के क्रम से प्रतिदिन योजन अर्ध योजन मार्ग का अवगहन करते हुए, पिण्ड चार करते हुए लोकानुग्रह से गमन करन 'अत्वरित चारिका' है।
चीवर-भिक्ष का काषाय-वस्त्र जो कई टुकड़ों को एक साथ जोड़कर तैयार किया जा
है। विनय के अनुसार भिक्षु के लिए तीन चीवर धारण करने का विधान है : १. अन्तरवासक-कटि से नीचे पहिनने का वस्त्र, जो लुंगी की तरह लपेटा जाता
२. उत्तरासंग-पाँच हाथ लम्बा और चार हाथ चौड़ी वस्त्र जो शरीर के ऊपरी भाग
में चद्दर की तरह लपेटा जाता है। ३. संघाटी–इसकी लम्बाई-चौड़ाई उत्तरासंग की तरह होती है, किन्तु यह दुहरी सिली
रहती है। यह कन्धे पर तह लगा कर रखी जाती है । ठण्ड लगने पर या अन्य किसी विशेष प्रसंग पर इसका उपयोग किया जाता है।
चैत्यगर्भ-देव-स्थान का मुख्य भाग।
छन्द-राग । जंघा-विहार-टहलना। जन्ताघर--स्नानागार। जम्बूद्वीप-दस हजार योजन विस्तीर्ण भू-भाग, जिसमें चार हजार योजन प्रदेश जल से भरा
है; अत: समुद्र कहलाता है। तीन हजार योजना में मनुष्य बसते हैं। शेष तीन हजार योजन में चौरासी हजार कूटों से शोभित चारों ओर बहती हुई पाँच सौ नदियों से
विचित्र पाँच सौ योजन समुन्नत हिमवान् (हिमालय) है। जाति-संग्रह-अपने परिजनों को प्रतिबुद्ध करने का उपक्रम ।
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