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भाषा और साहित्य]
विश्व भाषा-प्रवाह भाषा के विकास का यह आदि-चरण है। वे ध्वनियां अमुक-अमुक भावों की अभिव्यंजना की इगित या प्रतीक बन जाती हैं।
पूर्व चर्चित मनोभावाभिव्यंजनवाद ( Interjectional Theory ) से यह स्थापना पृथक् है। वहां आकस्मिक भावोद्रेकवश सहसा मुंह से निकल पड़ने वाली ध्वनियों का विवेचन है और यहां आवश्यकता, उत्सुकता, असहिष्णुता, कामैषणा आदि से अभिभूत होकर जब मानव ध्वनियां प्रकट करने का प्रयत्न करता है, परिणाम स्वरूप उसके मुंह से जो ध्वनियां नि:सृत होती हैं, उनका समावेश है। सहसा ध्वनि का निकल पड़ना और आवश्यक मान कर ध्वनियां निकालना; दोनों पृथक्-पृथक् हैं।
भाषा के विकास का दूसरा सोपान अनुकरणात्मक शब्दों का है। पशुओं व पक्षियों की बोलियों के अनुकरण तथा निर्जीव वस्तुओं के अनुरणन के नाम से जो विवेचन किया गया है, जॉनसन का लगभग वही अभिप्राय है। भाव-संकेत : इंगित
जॉनसन तीसरा सोपान भाष-संकेतों या इगितों का बतलाते हैं। इनका भी आधार अनुकरण ही है, पर, यह अनुकरण बाह्य पदार्थों, पशु-पक्षियों या वस्तुओं से सम्बद्ध नहीं है। यह अनुकरण जिह्वा आदि द्वारा अंगों का, अंग-संकेतों का, उनमें भी प्रमुखतः हाथों का है। जॉनसन इसे Unconscious Imitation कहते हैं, अर्थात् यह ऐसा अनुकरण है, जिसका अनुकर्ता को स्वयं भी कोई भान नहीं रहता। उनका ऐसा अभिप्राय प्रतीत होता है कि मन में जब-जब एक विशेष प्रकार का भाव उभार में आता है, देह के अंगों में एक विशेष प्रकार का स्पन्दन होता है। क्रोध और दुःसाहस की मनोदशा में मनुष्य तनकर खड़ा हो जाता है, उसका सीना तन जाता है, होठ फड़कने लगते हैं, भयाक्रान्त होने पर वह दुबक जाता है। सिकुड़ जाता है), उल्लासपूर्ण मिलन-मुद्रा में बाहें फैला देता है, दृढ़ निश्चय, प्रतिज्ञा या आक्रमण के भावावेश में भुजाए उठा लेता है, चुनौती के भाव में सामने की वस्तु पर हथेली दे मारता है। ये आंगिक क्रिया-प्रक्रियाए होती रहती हैं और उनके अनुकरण पर अननुभूत रूप में Unconsciously वागिन्द्रिय द्वारा कुछ शब्द उच्चारित होते रहते हैं। अनेक भावों के प्रकाशक शब्दों के उद्भव का वह प्रकार है। जॉनसन सम्भवतः यही कहना चाहते हैं। सूक्ष्म-भावों को अभिव्यंजना
सूक्ष्म भावों के द्योतक शब्दों के उद्भव के सम्बन्ध में जॉनसन का कहना है कि ज्यों-ज्यों मानव का उत्तरोत्तर मानसिक विकास होता गया, शनैः-शनैः सूक्ष्म भावों की अभिष्यजना के लिए भी कुछ ध्वनियां या शब्द उद्भावित करता गया। भाषा के चार सोपानों में यह
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