SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 697
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाषा और साहित्य ] सारांश तिलोय पण्णत्ति, धवला, जयधवला. श्रुतावतार आदि में गौतम से लोहार्य तक के आचार्यों का समय ६८३ वर्ष माना गया है । शौरसेनी प्राकृत और उसका वाङमय इन्द्रनन्दि ने लोहार्य और धरसेन के मध्य विनयदत्त, श्रीदत्त, शिवदत्त तथा प्रदत्त -- इन चार तथा अर्हदुबलि और माघनन्दि― इन दो आचार्यों का और उल्लेख किया है । उनमें प्रथम चार सम्भवतः एक ही काल के हों, क्योंकि उनका उल्लेख पूर्व-पश्चाद्-भेद सूचकता के संकेत के बिना एक ही साथ है। दिगम्बर समाज के प्रमुख विद्वान् पं० जुगलकिशोर मुख्तार ने इनके काल के सम्बन्ध में ऊहापोह किया है। उनके अनुसार सामष्टिक रूप में उनका काल बीस वर्ष का है। मुख्तारजी ने प्रर्हद्बलि तथा माघनन्दि का काल क्रमश: दश दश वर्ष का माना है। इस प्रकार, लोहार्य के चालीस वर्ष बाद श्रर्थात् वीर - निर्वाण सं० ७२३ धरसेन का समय होता है । नन्दि-संघ की प्राकृत- पट्टावली में घरसेन नन्दि - संघ की प्राकृत - पट्टावली प्रस्तुत विषय में एक महत्वपूर्ण सामग्री उपस्थित करती हैं, जो अनेक दृष्टियों से विचारणीय है । " १. समन्तभद्र, पृ० १६१ २. अंतिम जिण णिव्वाले बारह- वासे य गये तह बारहवासे पुण संजावो जम्बुसामि मुणिणाहो । अठतीसवासरहियो केवलणाणी य Jain Education International 2010_05 केवलणाणी य गोयम मुणिदो । सुधम्मसामी य संजावो ॥१॥ उक्किट्ठो ॥ २ ॥ बासट्ठि - केवलवासे तिहि मुणी गोयम सुधम्मजंबू य । * बारह बारह वो जण तिथ दुगहोणं च चालीसं ॥ ३ ॥ सुयकेवलि पंच जणा बासट्ठि वासे गये सुसंज्जदा । पढमं चउदवासं विण्डुकुमारं मुयध्वं ॥ ४ ॥ नंदिमित्त वाससोलह तिय अपराजिय वास बावीसं । इहीणबी सवासं गोवद्धण भद्दबाहु गुणीसं ॥ ५ ॥ सद सुयकेवलणाणी पंच जणा अपराजिय गोवगुण तह विण्डु नंदिमित्तो य । भद्दबाहु य संजादा ॥। ६ ।। [ ६४७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy