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________________ । । २ ५९८] आगम और विपिटक : एक अनुशीलन लाख दो हजार पद है।"1 १. अंगपविट्ठस्स अत्याधियारो बारस बिहो। तंजहा-आयारो, सूवपदं, ठाणं, समवायो, वियाहपप्णत्ती, णाहधम्मकहा, उवासयज्झयणं, अंतयउदसा, अनुसरोववादियदसा, पण्हावापरणं, विवागसुत्त, दिट्टिवादो चेदि । एस्थायारंग मट्ठारह-पद-सहस्से हि १८००० कधं चरे कधं चिट्ठ कधभासे कधं सए। कधं भुजेज्ज भासेज्ज कधं पावं णा बज्झई ॥ ७० ॥ जदं चरे जदं चिढे जदभासे जदं सए। जदं भुजेज्ज भासेज्ज एवं पावं ण बज्मई ॥ ७१ ॥ एवमादियं मुणोणयायारं वण्णेदि । सुदयदं णाम अंग छत्तीस-पद ००० जाणविणय-पण्णावणा-कप्पाकप्प. च्छेदो-वट्ठावण-ववहारधम्मकिरियाओ परवेइ ससमय-परसमय-सरूवं च पहवेइ। ठाण णाम अंगं बायालीस-पद-सहस्सेहिं ४२००० एगादि-एगुत्तर-ट्ठाणाणि वरगेदि । तस्सोदाहरणं एक्को चेव महप्पो सो दुवियप्पो तिलक्खणो भणिओ । चदु-संकमणा-जुत्तो पंचग्ग-गुण-प्पहाणो य ॥ ७२ ॥ छक्कावक्कम-जुत्तो कमसो सो सत्त-भंगि-सब्मावो। अट्ठासवो णवट्ठो जीवो दस-ठाणियो भणियो ॥ ७३ ॥ समवायो णाम अंगं चउसट्टि-सहरसभहिय-एग-लवख-पदेहि १६४००० रूब्वपयत्थाणं समवायं वण्रणेदि । सो वि समबायो चउ'व्यहो, दव-खेत्त-काल-भाव समवायो चेदि । तत्थ दव्व-समवायो धम्मत्थिय-अधम्मत्थिय-लोगागास-एगजीवपदेसा च समा। खेत्तदो सीमंतणिरय-माणुसखेत्त-उडुविमाण-सिद्धिखेत्तं च समा। कालदो समयो समएण मुहुत्तो मुहुत्ते ण समो। भावदो केवलणाणं केवलदंसपेण समं पेयप्पमाणं णाणमेत्तचेयणोव-लंभादो। ___ वियाहपण्णत्ती णाम अंगं दोहि लक्खेहि अट्ठावीस-सहस्सेहि पदेहि २२८००० किमथि जीवो, कि पत्थि जीवो, इच्चेवमाइयाई सहि-वायरण-सहस्साणि परूवेदि । णाहधम्मकहा णाम अंगं पंच-लक्ख-छप्पण्ण-सहस्स पदेहि ५५६००० सुत्तपोरिसीसु तित्थयराणं धम्मदेसणं गणहरदेवस्स जाद-संसयस्स संदेह-छिदण-विहाणं, बहुविहकहाओ उवकहाओ च वण्णेदि । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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