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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
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अवशिष्ट ग्यारह अंगों के सन्दर्भ में दिगम्बरों की तरह सर्वथा तो नहीं, पर ( ग्यारह अंग ) उत्तरोत्तर क्रमश: विच्छिन्न एवं हसित होते जायेंगे, ऐसा श्वेताम्बर भी स्वीकार करते हैं ।
तित्थोगालीपना में इस सम्बन्ध में जो वर्णन है, वह इस प्रकार है: "दिन्नगरिणपुष्यमित्र के देहावसान के साथ वीर निर्वाण सं० १२५० में व्याख्या प्रज्ञप्ति सूत्र का म्युच्छेद हो जायेगा । "1
तित्थोगालीपलाकार व्याख्या प्रज्ञप्ति के अन्तिम सम्पूर्ण वैत्ता पुष्यमित्र की विशेषता की चर्चा करते हुए लिखते हैं : "श्रमणोचित गुणों में निष्लात, आत्मबल सम्पन्न पुष्यमित्र अन्तिम व्याख्या प्रज्ञप्तिधर होंगे ।
चौबीस हजार पदों से युक्त, गुणनिष्पन्न व्याख्या - प्रज्ञप्ति सूत्र रूप वृक्ष के व्युच्छिन्न हो जाने पर लोग सहसा उनकी विशेषताओं के फलों से वंचित हो जायेंगे ।" "
वीर-निर्वाण के १३०० वर्ष पश्चात् माढर गोत्रोत्पन्न संभूति नामक यति (साधु) के के मरण के साथ समवायांग का व्यवच्छेद हो जायेगा । वीर निर्वारण के १३५० वर्ष पश्चात् आर्जव नामक मुनि के दिवंगमन के साथ स्थानांग सूत्र का ध्युच्छेद हो जायेगा, ऐसा जिनेन्द्र भगवान् का निर्देश है ।' 11'8
१. पण्णासा वरिसेहि, य बारसबरिससएहि वोच्छेदो । दिण्णगणि पूसमिल, सविवाहाणं छलं माणं ॥
२. तामेण पूसमित्तो, समणो समणगुणनिउणचित्तो । होही अपच्छिमो किर, विवाहसुयधारको वीरो । तंमिय विवाहरुक्खे, चुलसीति पयसहस्सगुणकिलिओ । सहसं च्चिय संभंतो, होही गुणनिष्फलो लोगो ॥
३. समवाय ववच्छेदो, तेरसहि सतेहिं होहि वासाणं । माढरगोत्तस्स इहं, संभूतिजतिस्स मरणंमि ॥ तेरसवरिससहि, पण्णासा समहिएहिं वोच्छेदो । अज्जव तिस्स मरणे, ठाणस्स जिरोहि निद्दिट्ठो ॥
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- तित्थोगालीपन्ना, गा० ८०७
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- वही, गा० ८०८-९
- वहीं, गा० ६१००८११
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