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________________ भाषा और साहित्य ] विश्व भाषा प्रवाह यूनान व यूरोप में भाषा T- विश्लेषण पुरातन संस्कृति, साहित्य तथा दर्शन के विकास में प्राच्य देशों में जो स्थान भारत का है, उसी तरह पाश्चात्य देशों में ग्रीस ( यूनान ) का है । भारतवर्ष के अनन्तर यूनान में भी भाषा-तत्त्व पर कुछ चिन्तन चला । यद्यपि वह भारतवर्ष की तुलना में बहुत साधारण था, केवल ऊपरी सतह को छूने वाला था, पर, पाश्चात्य देशों में इस क्षेत्र में सबसे पहला प्रयास था, इसलिए उसका ऐतिहासिक महत्व है । Jain Education International 2010_05 सुकरात का इंगित उनका सुकरात ( ई० पू० ४६६ से ई० पू० ३६६ ) यूनान के महान् दार्शनिक थे । विषय तत्त्व ज्ञान था; अतः भाषा-शास्त्र के सम्बन्ध में उन्होंने लक्ष्यपूर्वक कुछ नहीं लिखा, पर, अन्य विषयों की चर्चा के प्रसंग में इस विषय की ओर भी कुछ इंगित किया । सुकरात के समक्ष यह प्रश्न आया कि शब्द और अर्थ में परस्पर जो सम्बन्ध है, वह स्वाभाविक है या इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि किसी एक वस्तु का जो नाम प्रचलित है, उस (नाम) के स्थान पर यदि कोई दूसरा नाम रख दिया जाए, तो क्या वह अस्वाभाविक होगा ? सुकरात का इस सन्दर्भ में यह चिन्तन था कि किसी वस्तु और उसके नाम का दूसरे शब्दों में अर्थ और शब्द का कोई स्वाभाविक सम्बन्ध नहीं है 1 है । यदि किसी वस्तु का उसके नाम से स्वाभाविक सम्बन्ध सर्वव्यापी होता, देश - काल के भेद से व्याहत नहीं होता । जिस किसी भाषा का एक शब्द सभी दूसरी भाषाओं में अर्थ का अपनी भाषा में द्योतक है । अर्थात्, संसार में होती । प्लेटो ने भाषा और विचार के सम्बन्ध पर भी और भाषा में केवल इतना ही अन्तर है कि विचार [ १३ प्लेटो : भाषा-तत्व सुकरात के पश्चात् उनके शिष्य प्लेटो ( ४२९ ई० पू० से ३४७ ई० पू० ) यूनान के बहुत बड़े विचारक हुए । उनका भी अपने गुरु की तरह भाषा - विज्ञान से कोई साक्षात् सम्बन्ध नहीं था । उन्होंने यथा-प्रसंग भाषा तत्वों के सम्बन्ध में जहां-तहां अपने विचार प्रकट किये हैं, जिनका भाषा विज्ञान के इतिहास में कुछ-न-कुछ महत्व है । उन्होंने ध्वनियों के वर्गीकरण का मार्ग दिखाया तथा ग्रीक भाषा की ध्वनियों को घोष और अघोष; इन दो भागों में विभक्त किया । यूरोप में ध्वनियों के वर्गीकरण का यह सबसे पहला प्रयत्न था । वह मानव द्वारा स्वीकृत सम्बन्ध होता, तो वह शाश्वत होता, ऐसा होने पर संसार में सर्वत्र उसी अर्थ का द्योतक होता, जिस सबकी स्वाभाविक भाषा एक ही चर्चा की है । उनके अनुसार विचार आत्मा का अध्वन्यात्मक या निःशब्द For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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