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मावा और साहित्य ]
शौरसेनी प्राकृत और उसका बाङ् मय
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गुरु
ने कहा - "वह (आयं जम्मू के निर्वाण के साथ ही ) आज व्युच्छित है ।" शिवभूति बोला- “जिम - कल्प का उच्छेद असत्ववान् दुर्बलचेता व्यक्ति के लिए हो सकता है । सामर्थ्यशील पुरुष के लिए वह कैसे व्युच्छिन्न होगा ? |
for पूछे एक रत्न - कम्बल को फाड़ दिये जाने के कारण वह कषाय- कलुषित तो था ही, कहने लगा-'शास्त्र में (वस्त्रादि ) परिग्रह के अनेक दोष कहे गये हैं, इसीलिए वहां परिग्रह का विधान है । वस्तुतः जिनकल्प हो आचरणीय है । "
मुनि लब्जा, जुगुप्सा, शीतोष्णादि; इन तीनों स्थानों— अपेक्षानों से निर्वस्त्रस्वरूप परिषह के विजेता होते है । फलतः वे वस्त्र धारण नहीं करते । वास्तव में अचलेकतानिर्वस्त्रता ही श्रेयस्कर है । "
गुरु ने कहा- "यदि (वस्त्रादि) परिग्रह कषाय का हेतु हैं तो यह देह भी तो कषाय आदि के उत्पन्न होने का कारण हो सकता है । जो कोई भी वस्तु कषाय का कारण बन सके, उसे तब क्यों धारण किये रहना चाहिए ? इतना ही नहीं, वैसा मान लेने पर धर्म भी नहीं अपनाया जा सकता । "8
१. जिणक प्पोऽणुचरिज्जइ वीच्छिन्नो त्ति भणिए पुणो भणइ । तदसत्तस्सो च्छ्रिज्जउ वोच्छ्ज्जिइ
किंक
समत्थस्स ।। २५५४ ।। - विशेषावश्यक भाष्य
२. पुव्वमणपुच्छ छिण्ण कंबलकसायकलुसिओ चैव ।
सो बेइ परिग्गहओ कसायमुच्छाभयाईया ॥। २५५५ ।। दोसा जओ सुबहुया सुए य भणियमपरिग्गहत्तं ति । जमवेला य जिणिदा तदभिहिओ जं च जिणकप्पो ।। २५५६ ॥ जं च जियाचेलपरीसहो मुणी जं च तीहि ठारोह । वत्थं धरेज्ज नेगंतओ तओऽचेलया सेया ।। २५५७ ॥ - वही
३. गुरुणाऽभिहिओ जइ जं कसायहेऊ परिग्गहो सो ते ।
तो सो देहो च्चिय ते कसाय-उत्पत्ति हेउत्ति ।। २५५८ ॥ अस्थि व किं किंचि जए जस्स व तस्स व कसायवीयं जं । वत्युं न होज्ज एवं धम्मोऽवि तुमे न घेतव्वो ।। २५५९ ॥
- वही
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