________________
४४४ ]
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड । २ (झ) मृग-मांस के भक्षण पर निर्वाह करने वाले। (ट) हाथी का मांस खाकर रहने वाले। (ठ) सदा ऊँचा दण्ड किये रहने वाले । (ड) वल्कल-वस्त्र धारण करने वाले । (ढ) सदा पानी में रहने वाले । (ण) सदा वृक्ष के नीचे रहने वाले । (त) केवल जल पर निर्वाह करने वाले। (थ) जल के ऊपर आने वाली शैवाल खा कर जीवन चलाने वाले। (द) वायु-भक्षण करने वाले। (ध) वृक्ष-मूल का आहार करने वाले ।
(न) वृक्ष के कन्द का आहार करने वाले । .. (प) वृक्ष के पत्तों का आहार करने वाले ।
(फ) वृक्ष की छाल का आहार करने वाले। (ब) पुष्पों का आहार करने वाले । (भ) बीजों का पाहार करने वाले । (म) स्वतः टूट कर गिरे हुए पत्रों, पुष्पों तथा फलों का प्राहार करने वाले । (य) दूसरों द्वारा फेंके हुए पदार्थों का आहार करने वाले । (र) सूर्य की मातापना लेने वाले। (ल) कष्ट सह कर शरीर को पत्थर जैसा कठोर बनाने वाले । (व) पंचाग्नि तापने वाले।
(श) गर्म बर्तन पर शरीर को परितप्त करने वाले। तापसों के वे विभिन्न रूप उस समय की साधना-प्रणालियों की विविधता के द्योतक हैं । साधारणतः इनमें से कुछ का झुकाव हठयोग या काय-क्लेश मूलक तप की मोर अधिक प्रतीत होता है। इन साधनाओं का सांगोपांग रूप क्या था, इनका किन दार्शनिक परम्पराओं या धर्म-सम्प्रदायों से सम्बन्ध था, उन दिनों भारत में उस प्रकार के उनसे भिन्न और भी साधना-क्रम थे क्या, उनके पीछे तत्व-चिन्तन की क्या पृष्ठ-भूमि थी, इत्यादि विषयों के अध्ययन की दृष्टि से ये सूचनाएं उपयोगी हैं।
११ पुष्फला ( पुष्पचूला ) १. श्रीदेवी-अध्ययन, २. ह्रीदेवी-अध्ययन, ३. धृतिदेवी-अध्ययन, ४. कीर्तिदेवी-मध्ययन ५. बुद्धिदेवी-अध्ययन ६. लक्ष्मीदेवी-अध्ययन ७. इलादेवी-अध्ययन, ८. सुरादेवी-अध्ययन,
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org