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________________ ३६०] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशोलन [खण्ड : २ ग्यारह अंगों के धारक नहीं रहे।"1 ___ आचारांगधरों के विच्छेद के सम्बन्ध में तिलोयपण्णती में लिखा है : "सुभद्र, यशोभद्र, यशोबाहु तथा लौहार्य; ये चार श्रमण आचारांग के धारक हुए। इन चारों के अतीत हो जाने पर चौदह पूर्व और ग्यारह अगों के एक देश के-आंशिक धारक रहे। आचारांगधरों का काल-परिमाण एक सौ अठारह वर्ष है। इन ( आचारांगवरों ) के स्वर्गगत हो जाने पर फिर भरत क्षेत्र में कोई आचारांग के धारक नहीं हुए। गौतम से लेकर तब तक का काल परिमाण ( केवली काल १६२ वर्ष + चतुर्दश पूर्वधर काल १८३ वर्ष + दशपूर्वधर काल २२० वर्ष + आचारांगघर काल ११८ वर्ष = ६८३) छः सो तिरासी वर्ष का है ।" तुलनात्मक पर्यवेक्षण केवल-ज्ञान की अवस्थिति के सम्बन्ध में श्वेताम्बर तथा दिगम्बर; दोनों का ऐकमत्य है। दोनों आर्य जम्बू तक उसे स्वीकार करते हैं। चतुर्दश पूर्वो के ज्ञान के विषय में भी दोनों के विचार एक समान हैं। दोनों के अनुसार अन्तिम चतुर्दश पूर्वधर आचार्य भद्रबाहु हैं। केवल काल-गणना में आठ वर्ष का अन्तर आता है। महावीय-निर्धाण से आचार्य भद्रबाहु के देहावसान तक का समय श्वेताम्बरों के अनुसार एक सौ सत्तर वर्ष है और दिगम्बरों के अनुसार एक सौ बासठ वर्ष। इसके अनन्तरा दोनों धाराओं में भिन्नता दिखाई देती है। श्वेताम्बर-परम्परा के अनुसार आर्य वज्र ( स्वर्गवास पीर-निर्वाणाब्द ५८४ ) तक दश पूर्व रहे, जब कि दिगम्बर-परम्परा के अनुसार वीर-निर्वाण से ३४५ वर्ष तक उनका अस्तित्व रहा । दोनों परम्पराओं में २३६ वर्ष का अन्तर आता है । दिगम्बए श्वेताम्बरों १. णक्खत्तो जयपालो पंडुयघुवसेणकस आइरिया। एक्कारसंगधारी पंच इमे वोरतित्थम्मि । दोण्णि सया बीस जुदा वासाणं ताण पिंडपरिमाणं । तेसु अदीदे णत्थि हु भरहे एक्कारसंगधरा ॥ -तिलोषपण्णती, १४८८-८९ २. पढमो सुभद्दणामो जसमद्दो तहय होदि जसबाहू। तुरियो य लोहणामो एदे आयार अंगधरा ॥ सेसेक्करसंगाणं चोद्दसपुत्वाण मेक्कदेसधरा। एक्कसयं अट्ठारसवासजुदं ताण परिमाणं ॥ तेसु अदीदेसु तदा आचारधरा ण होंति भरहम्मि । गोदममणिपहुदीणं वासाणं छस्सदाणि तेसीदी ॥ -वही, १४९०-९२ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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