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भाषा और साहित्य ]
आर्ष (अर्द्धमागधी ) प्राकृत और आगम वाङमय [ ३८५
आचार्य भद्रबाहु तक यद्यपि जैन धर्म भारत में चारों ओर फैल चुका था, पर यह ऐतिहासिक तथ्य है कि तब तक जैन धर्म का मुख्य केन्द्र मगध और समीपवर्ती प्रदेश थे । इसलिये यह सम्भावित माना जा सकता है कि सामान्यतः आचार्य भद्रबाहु का भी अधिक प्रवास और विहार मगध व उसके पाश्ववर्ती भू-भागों में होता रहा हो । इस आधार पर उनसे सम्बद्ध सम्राट् चन्द्रगुप्त का पाटलिपुत्र में स्थित होना कहीं अधिक संगत हैं । पाश्चात्य तथा भारतीय इतिहासज्ञों के अभिमत भी प्रायः चन्द्रगुप्त को पाटलिपुत्र से सम्बद्ध मानने की ओर अधिक हैं ।
सभी श्वेताम्बर लेखक आचार्य भद्रबाहु का विशिष्ट यौगिक साधना ( महाप्राणध्यान ) की दृष्टि से नेपाल जाना स्वीकार करते हैं । पाटलिपुत्र क्षेत्र से नेपाल जाना सर्वथा संगत और सम्भाव्य प्रतीत होता है । नेपाल पर्वतीय प्रदेश है। योग साधना के अनुकूल है । पाटलिपुत्र से बहुत दूर भी नहीं है ।
यह भो कल्पना की जाती है कि अवन्ती- प्रदेश मगध साम्राज्य का भाग रहा हो । मगध साम्राज्य के पश्चिमी भाग का केन्द्र स्थान, प्रादेशिक राजधानी या साम्राज्य की उपराजधानी उज्जयिनी रही हो । पाटलिपुत्र ( मगध ) - नरेश चन्द्रगुप्त अपने जीवन के उतराद्ध में उज्जयिनी में रहने लगा हो और आचार्य भद्रबाहु से सम्बद्ध घटनाक्रम उस समय के हों ।
स्थिति आकलन का स्पष्ट रूप इस सम्बन्ध में इस प्रकार है- अशोक के समय में तो ऐसा हुआ था । पाटलिपुत्र मगध साम्राज्य की केन्द्रीय राजधानी या तथा उज्जयिनी का स्तर भी मगध साम्राज्य के पश्चिमी भाग पाटनगर या मगध साम्राज्य की उपराजधानी जैसा था । अशोक ने अपने पुत्र कुणाल को पश्चिम का प्रादेशिक शासक बना कर वहीं भेजा था । हिमवत् थेरावली में भी उल्लेख है कि २४६ वीर निर्वाणाब्द में संप्रति अशोक का पौत्र ) उज्जयिनी चला गया था। पर, चन्द्रगुप्त ने वैसा किया हो, वह स्वयं वहां रहा हो, इस सम्बन्ध में पुष्ट प्रमाण अप्राप्त हैं; अतः यह कल्पना अस्थानीय है ।
वस्तुतः चन्द्रगुप्त मौर्य का सम्बन्ध पाटलिपुत्र से ही संगत प्रतीत होता है । फिर भी इसे इत्थंभूत तथ्य न मानते हुए गवेषणा-सापेक्ष माना जाना चाहिए । अन्ततः इस प्रसंग को यही उल्लेख करते हुए समाप्त किया जाता है, आचार्य भद्रबाहु दक्षिण गये होंगे, पर, सम्भवतः वे द्वितीय भद्रबाहु रहे होंगे । प्रथम भद्रबाहु के साथ दक्षिण जाने का प्रसंग वटित नहीं होता ।
संघाधिपत्य
आर्य जम्बू के अनन्तर भगवान् महावीर के धर्म-संघ के पांचवें अधिकारी या
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