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________________ विषयानुक्रम 9 ४७७ ४७७ ४७८ ४७८ ४७८ ४७९ ४७९ ४८. ४८. ४८० ४८१ ४८१ ४८१ ४८२ ४८२ कलेवर : स्वरूप कुछ महत्वपूर्ण उल्लेख ओहनिज्जुत्ति ( ओघ नियुक्ति ) नाम : व्याख्या एक महत्वपूर्ण प्रसंग उपधि-निरूपण जिनकल्पी व स्थविर कल्पी के उपकरण साध्वी या प्रायिका के उपकरण व्याख्या-साहित्य पक्खिय सुत्त . पाक्षिक-सूत्र ) खामणा सुत्त (क्षामणा-सूत्र ) वंदित्तु सुत्त इसिभासिय ( ऋषि भासित ) नन्दी तथा अनुयोगद्वार नन्दी-सूत्र : रचयिता स्वरूप . विषय-वस्तु अनुयोग द्वार सप्त स्वर महत्वपूर्ण सूचनाएं प्रमाण-चर्चा दसपइण्णग ( दश प्रकोर्णक ) प्रकीर्णकों की परम्परा प्राप्त प्रकीर्णक १. चउसरण ( चतु. शरण ) २. आउर-पच्चक्खाण (आतुर प्रत्याख्यान) नाम : प्राशय : विषय ३, महापच्चवखाण ( महाप्रत्याख्यान ) नाम : अभिप्राय विषय-वस्तु ४. भत्त-परिण्णा ( भक्त-परिज्ञा ) ४८२ سلع ४८३ ४८४ ४८४ ४८४ ४८४ ४८६ ४८६ ४८७ ४८७ ४८७ ४८७ ४८८ ४८८ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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