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________________ विषयानुक्रम ३५ ४४८ ४४८ ४४८ ४४८ ४४९ ४४९ ४५. ४५० ४५१ १. निसीह (निशीथ ) निशीथ शब्द का अर्थ स्वरूप : विषय रचना : रचनाकार व्याख्या-साहित्य २. महानिसीह ( महानिशीथ ) कलेवर : विषय-वस्तु ऐतिहासिकता ३. ववहार ( व्यवहार ) कलेवर : विषय-वस्तु कतिपय महत्वपूर्ण प्रसंग रचयिता और व्याख्याकार ४. दसासुयक्खंध ( दशाश्रुतस्कन्ध ) गरिण-सम्पदा रचनाकार : व्याख्या-साहित्य ५. कप्प ( कल्प अथवा वृहत्कल्प ) कलेवर : विषय-वस्तु कतिपय महत्वपूर्ण उल्लेख रचना एवं व्याख्या-साहित्य ६. पंचकम्प ( पंच-कल्प ) जीयकप्पसुत्त ( जीतकल्प-सूत्र ) रचना : व्याख्या-साहित्य ४५३ ४५३ ४५५ ४५५ ४५६ ४५७ ४५८ ४५० ४५९ मूलसूत्र ४५९ ४६० ४६० ४६० महत्व मूल : नामकरण क्यों ? पाश्चात्य विद्वानों द्वारा विमर्श प्रो० शन्टियर का अभिमत डा० बाल्टर शुब्रिग का अभिमत प्रो० गेरीनो की कल्पना ४६१ समीक्षा ४६२ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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