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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : २
ब्राह्मी लिपि के विकास के मानचित्र से ज्ञात होता है कि वह भारत से बाहर भी प्रसूत हुई । अन्य लिपियों पर उसका प्रभाव भी पड़ा 1 प्राचीन कुची, खोतानी, यवद्वीप तथा बलिद्वीप आदि की भाषाओं के अक्षरों की निष्पत्ति और विकास में वह सहायक हुई । गान्धार देश, जिसमें पेशावर, यावलपिण्डी तथा काबुल आदि का क्षेत्र रहा है, मैं भी यह लिपि प्रचलित थी । वहां के पुराने ध्वंसावशेषों में ऐसे अनेक सिक्के मिले हैं, जिन पर ब्राह्मो तथा खरोष्ठी दोनों लिपियों में अक्षर खुदे हुए हैं । सारांश यह है कि एक
ऐसा समय रहा है, जब ब्राह्मी भारत की राष्ट्रीय लिपि थी तथा उसने आस-पास के देशों क लिपियों को भी प्रभावित किया ।
खरोष्ठी लिपि
खरोष्ठी : प्रयोग
ब्राह्मी के अतिरिक्त खरोष्ठी लिपि में भी कतिपय शिलालेख हैं, अत: उस लिपि पर संक्षेप में विचार करना प्रसंगोपात्त है । खरोष्ठी लिपि के प्राचीनतम उदाहरण अशोक के पश्चिमोत्तर के -- शाहबाजगढ़ी और मानसेवा के शिलालेख हैं । कांगड़ा आदि के भी कुछ शिलालेख हैं, जिन में खरोष्ठी का प्रयोग हुआ है । इस लिपि का प्रयोग वैदेशिक राजाओं के अभिलेखों तथा सिक्कों आदि में भी होता रहा है । इस लिपि के प्रयोग का समय लगभग ई० पू० चौथी शती से ईस्वीं तीसरा शताब्दी तक का है अर्थात् सात शताब्दियों तक इसका प्रयोग होता रहा । खरोष्ठी इण्डो- वेक्ट्रियन, वैक्ट्रियन, बैक्ट्रो-पालि, चेक्ट्रो
आर्यन तथा काबुलियन आदि नामों से भी अभिहित की गयी है ।
जैन वाङमय
1
ब्राह्मो लिपि के विवेचन के प्रसंग में जैन ग्रन्थों के जो अंश उद्धत किये गये हैं, उनमें से कुछ में ब्राह्मी के साथ-साथ खरोष्ठी का भी उल्लेख है, समवायांग सूत्र में जिन अठारह लिपियों का उल्लेख है, उनमें चौथे स्थान पर खरोष्ठिका नाम आया है, जो खरोष्ठी का पर्यायवाची है । प्रज्ञापना सूत्र के उद्धरण में भो चौथे स्थान पर खरोष्ठी का उल्लेख है । विशेषावश्यक टीका तथा कल्पसूत्र में जिस प्रकार ब्राह्मो का उल्लेख नहीं है, उसी प्रकार खरोष्ठी का भी कोई उल्लेख नहीं है। I
कल्पनाएं : हेतु
इस लिपि का खरोष्ठी नाम पड़ा, इस सम्बन्ध में विद्वानों ने अनेक प्रकार से कल्पनाएं कर उसे सिद्ध करने का प्रयास किया है । इस लिपि के नाम के शाब्दिक स्वरूप के आधार पर कुछ विद्वानों ने इस सम्बन्ध में विश्लेषण किया है । उनके अनुसार इसमें खरा और उष्ट्र
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