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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : २ कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी ऐसी सूचनाएं प्राप्त हैं, जो लिपि-ज्ञान को द्योतक हैं । अर्थशास्त्र का समय भो ई० पूर्व चौथी शती माना जाता है । वशिष्ठ धर्मसूत्र, मनुस्मृति, वात्स्यायन कामसूत्र आदि अन्य प्राचीन ग्रन्थों में भी लिपि-संकेतक उल्लेख हैं।
बौद्ध वाङमय में अटिका
बौद्ध पिटक वाङमय के ब्रह्मजालसुत्त नामक ग्रन्थ में किसी प्रसंग में एक खेल का वर्णन है, जिसका नाम वहां अक्खटिका दिया गया है। इसका संस्कृत रूप अक्षरिका होता है । इसे इस प्रकार समझा जा सकता है --एक व्यक्ति द्वारा आकाश में कुछ अक्षर लिखे जाते या किसी अन्य व्यक्ति की पीठ पर अक्षर लिखे जाते, जिन्हें किसी दूसरे व्यक्ति को पहचानना होता । आकाश में अक्षर लिखे जाने का आशय है, अंगुली से आकाश में अक्षरों के आकार बनाने का उपक्रम करना । उसो तरह किसी की पीठ पर अक्षर लिखने का तात्पर्य भी वैसा ही है, अंगुली से पीठ पर अक्षर का स्वरूप आंकना । दूसरे व्यक्ति को उसे पहचान कर बताना होता कि आकाश में क्या लिखा गया ? जिसकी पीठ पर अंगुली से अक्षर स्वरूप अंकित किया जाता, उसे भी बताना होता कि वे कौन-कौन अक्षर थे। पहचान पाने और न पाने पर ही उस खेल में विजय-पराजय आघृत थी। यदि अक्षरों के स्वरूप या लिपि का प्रचलन नहीं होता, तो इस प्रकार के खेल की कल्पना ही नहीं की जा सकती थी।
ब्रह्मजालसुत्त, जिसमें 'अक्खरिका' का उल्लेख है, सुत्तपिटक के दोघ निकाय के अन्तर्ती सोलक्खन्ध वग्ग का प्रथम सूत्र है।
विनय पिटक और जातक ट्रान्ध
पिटक वाङमय के प्रमुख अंग विनय पिटक में ऐसे प्रसग हैं, जिनसे लेखन-कला की प्रशस्ति तथा लेख, लेखक आदि शब्दों का सूचन प्राप्त होता है । आल्डन वर्ग ने विनय पिटक की ऐतिहासिकता ई० पू० चार शताब्दी से पहले की स्वीकार की है।
जातक ग्रन्थ प्राचीन भारत के समाज, जीवन, कला, कौशल, विद्या, व्यवसाय आदि का चित्र उपस्थित करने वालो महत्वपूर्ण कृतियां हैं। महामहोपाध्याय डा० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा जैसे विद्वानों के अनुसार इनमें लगभग ई० पूर्व छठी शताब्दी या उससे भो पहले के भारतीय जन-जीवन का चित्र उपस्थित है । जातक ग्रन्थों में लेखिनी, पुस्तक, पाठशाला, लेख, लेखक, अक्षर तथा काठ, बांस, पत्र, सुवर्ण-पत्र, काष्ठफलक आदि लेखनोपयोगी सामग्री का उल्लेख प्राप्त होता है। इनसे स्पष्टतया लेखन या लिपि-कला का संकेत मिलता है।
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