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________________ २४०] आगम और त्रिपटिक : एक अनुशीलन [खण्ड :२ के लिए तक, अधुना के लिए अधुन, पश्चात् के लिए पछ, तीव्र के लिए तिव तथा अपराधेन के लिए अपरधेन जैसे प्रयोग हुए हैं। - पश्चिमोत्तर के शिलालेखों में अकारान्त नामों के प्रथमा एकवचन में ओ तथा ए दोनों मिलते हैं। वहां कोई निश्चित नियामकता दृष्टिगोचर नहीं होती। गिरनार के शिलालेख में ओ का प्रयोग अधिक हुआ है, जबकि धौली, जोगढ़ तथा कालसी के शिलालेखों में ए अधिक प्रयुक्त हुआ है। . गिरनार के शिलालेखों में राजा के लिए अधिकांशतः राजा का प्रयोग हुआ है तथा कालसी, धौली और जोगढ़ के शिलालेखों में प्रायः राजा के लिए लाजा' आया है । शौरसेनी में र का परिवर्तन नहीं होता, जब कि मागधी में र ल में बदल जाता है। १. "सौ च पुन तथ करतं बढ़तर' उपहति अतप्रषडं । ( ........ सच पुनः तथा कुर्वन् वाढतरमुपहन्ति आत्मपाषण्डे । ) - शाहबाजगढ़ी, द्वादश शिलालेख २. ततो पछ अधुन लघेषु कलिगेषु तिने धमलन......। ... (ततः पश्चात् अधुना लब्धेषु कलिगेषु तीन धर्मपालने.......... -शाहबाजगढ़ी, त्रयोदश शिलालेख ३. ..."संखयकरण व अलोचेति विपिकरस व अपरधेन । (.........."संक्षेपकारणं वा आलोचयतु लिपिकरापराधेन वा ) -शाहबाजगढ़ी, चतुर्दश शिलालेख ४. देवानं प्रियो पियवसि राजा एवं आह ।-गिरनार, तृतीय शिलालेख देवानं पिये पियवसि राजा हेवं आहा ।-कालसी देवानं पिये पिहदसि लाजा हेवं आहा।-धौली देवानं पिये पियवसो लाजा हेवं आहा ।--जौगढ़ देवानं प्रियो प्रियदशि रज अहति ।-शाहबाजगढ़ी देवानं प्रिये प्रियदशि रज एव अह ।-मानसेरा देवानं प्रियः प्रियदर्शी राजा एवमाह ।) ५. देवानं पि......"पियवसि राजा एवं आह ।-षष्ठ शिलालेख, गिरनार देवानं पिये पियवसि लाजा हैवं आहा ।- कालसी देवानं पिये पियवशी लाजा हेवं आहा । -घौलो ......."नं पिये पियवसी लाजा हेवं आहा। -जौगढ़ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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