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२२४ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खण्ड:२ के स्तूप-लेखों में पंचनेकायिक, सुत्तन्तिक और पेटकी आदि शब्द आये हैं। पंचनेकायिक पांच निकायों के, सुत्तन्तिक सुत्त-पिटक के और पेटकी पिटकों के ज्ञाता के अर्थ में प्रयुक्त है। वहां जातकों के कुछ ऐसे दृश्य भी दिखलाये गये हैं, जिनसे पिटकों और निकायों के रूप में बुद्ध वचन के विभाजन की प्रामाणिकता सूचित होती है।
विद्वानों का अभिमत है कि इन अभिलेखों के युग से पहले बुद्ध-वचन का तीन पिटकों और पांच निकायों के रूप में आज की तरह विभाजन निश्चित हो गया था। इन अभिलेखों के अनन्तर मिलिन्द पन्हों, बुद्धघोष की अट्ठकथाएं, दीपवंस, महावंस आदि में इस सम्बन्ध में स्पष्ट उल्लेख है। ___चौरासी हजार धर्म-ग्रन्थों के रूप में बुद्ध-वचन के विभाजन का जो एक स्वरूप और चर्चित हुआ है, वह भी बहुत प्राचीन मालूम होता है। थेरगाथा में आनन्द ने कहा कि मुझे चौरासी हजार उपदेशों का ज्ञान है। उनमें से बयासी हजार मैंने भगवान् बुद्ध से और दो हजार सघ से सीखे हैं। आचार्य बुद्धघोष द्वारा समन्तपासादिका में किये गये उल्लेख के अनुसार प्रथम संगोति में इन (चोरासी हजार धर्म-स्कन्धों) का संगान हुआ था।
महावंस का इस सम्बन्ध में एक प्रसंग है, "सम्राट् (अशोक) ने स्थविर मोग्गलिपुत्त तिस्स से पूछा- "भगवान् बुद्ध द्वारा दिये हुए उपदेश कितने हैं ?" स्थविर ने उत्तर दिया"धर्म के चौरासी हजार स्कन्ध ( भगवान् बुद्ध द्वारा उपदिष्ट) हैं।" सम्राट ने कहा"मैं प्रत्येक के लिए विहार बनवाकर उन सबकी पूजा करूगा ।" तदनन्तर सम्राट् ने चौरासी हजार नगरों में विहार बनवाने आरम्भ किये। बौद्ध परम्परा में सम्राट अशोक द्वारा चौरासी हजार विहार बनवाये जाने की बहुत प्रसिद्धि है।
१. Buddhist India. Royas Devids. P. 167 २. समन्तपासादिका, प्रथम जिल्द, पृ० २९ ३. महावंस, ५. ७६. ८०
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