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________________ १०४ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशोलन [खण्ड : २ सबकी भाषा तो एक ही थी, जिनका महाभाष्यकार निरूपण कर रहे हैं। ऐसा लगता है, महाभाष्यकार का मार्यों से उन लोगों का आशय है, जो भाषा के शिष्ट या परिनिष्ठित रूप का प्रयोग करते थे, जो उस समय भाषा का स्तर ( Standerd ) था । सम्भवतः भौगोलिक दृष्टि से वे पश्चिमोत्तर प्रदेश के लोग रहे हों। जातीय दृष्ट्या तो सभी आयं ही थे और आर्य-भाषा ही बोलते थे। धातु आदि के प्रयोग में प्रादेशिक भेद के कारण जो कुछ भिन्नता आ गयी थी, उससे उन-उन प्रदेशों में प्रचलित लोक-भाषाओं का संस्कृत पर प्रभाव पड़ना समर्थित होता है। पाणिनि द्वारा संस्कार और सम्मान प्राप्त कर शिष्ट भाषा के रूप में लौकिक संस्कृत का उद्भव हुआ। आगे चल कर इसे केवल संस्कृत के नाम से सम्बोधित किया जाने लगा। 'संस्कृत नाम पाणिनि के काल से चला अथवा उनसे पूर्व ही प्रवृत्त हो चला था, निश्चित रूप में कुछ नहीं कहा जा सकता । भाषा के अर्थ में संस्कृत शब्द का सबसे पहला प्रयोग वाल्मोकी रामायण में प्राप्त होता है । सुन्दर काण्ड का प्रसंग है । हनुमान सीता से वार्तालाप आरम्भ करने से पूर्व सोच रहे हैं कि उन्हें उनसे किस भाषा में बातचीत करनी है। उस प्रसंग में उल्लेख है : अहं ह्यतितनुश्चैव वानरश्च विशेषतः । वाचं चौदाहरिष्यामि मानुषीमिह संस्कृताम् ॥1 -मेरा शरीर बहुत छोटा है तथा मैं विशेषतः बन्दर हूं। मैं मानवोचित संस्कृत भाषा में बोलूंगा। वाचम् पद के साथ जुड़ा हुआ यहां संस्कृताम् पद व्यक्ति-वाचक संज्ञा है या गुणवाचक विशेषण, यह विचारणीय है। मानुषी संस्कृतां वाचम् का अर्थ मजी हुई लोक-भाषा भी हो सकता है। वस्तुस्थिति क्या है, निश्चय की भाषा में कुछ नहीं कहा जा सकता, पर, शाब्दिक कलेवर की दृष्टि से तो संस्कृत शब्द प्रयुक्त हुआ ही है। अंग्रेजी में लौकिक संस्कृत का अनुवाद Classical Sanskrit किया गया है। लोक और Class शब्द की संगति नहीं प्रतीत होती। सम्भवतः एक विशेष वर्ग-सुशिक्षित ब्राह्मण वर्ग की भाषा या शिष्ट भाषा का आशय ध्यान में रख कर यह अंग्रेजी शब्द दिया गया हो। Classical शब्द के आधार पर कुछ विद्वान् लौकिक संस्कृत के स्थान पर श्रेण्य संस्कृत का प्रयोग भी करने लगे हैं । १. सुग्दर काण्ड, सर्ग ३०, श्लोक १७ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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