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________________ ८६ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : २ वैदिक संस्कृत में यह मूद्ध न्य व्यंजनों का वर्ग किस प्रकार आया, इस सम्बन्ध में कुछ विद्वानों का मन्तव्य है कि द्रविड़ परिवार की भाषाओं में ये ध्वनियां विद्यमान थीं । आर्यों के भारत में बसने से पूर्व द्रविड़ जाति के लोग यहां आबाद थे, इतिहास के विद्वान् ऐसा मानते हैं । नवागन्तुक आर्यों का प्राचीनवासी द्रविड़ों से सामीप्य बढ़ता गया । फलतः दोनों की भाषाओं में भी परस्पर आदान-प्रदान हुआ। दोनों ओर से कुछ शब्द एक दूसरी भाषा में गये, ध्वनियों पर भी प्रभाव पड़ा । उदाहरणार्थ, संस्कृत में प्रयुक्त मीन और नीर आदि शब्द द्रविड़ परिवार से आये हुए हैं; ऐसा माना जाता है । द्रविड़ भाषाओं में भी संस्कृत के शब्द आत्मसात् किये । उसी आदान-प्रदान के क्रम के बीच, सम्भव है, मूद्ध न्य व्यंजन ध्वनियां द्रविड़ परिवार से वैदिक संस्कृत में आ गयी हों 1 मूर्द्धन्य व्यंजनों में जो छू और छह दो आये हैं, उनका तात्पर्य यह है कि ळू अल्पप्राण है और ळूह ळका महाप्राण रूप है | अन्तःस्थ व् और दन्तोष्ठ्य व ; ये दो भिन्न ध्वनियां हैं । अंग्रेजी में जो V ध्वनि है, दन्तोष्ठ्य उसके समकक्ष है । यह फू का घोष रूप है । वैदिक संस्कृत में दन्तोष्ठ य व का भी प्रयोग होता था । - ह और ह. - जो दो रूप आये हैं, उनमें पहला तो सामान्य है है हो, दूसरा ह. विसर्ग ( : ) स्थानीय है । सामान्य ह घोष है । यह ( है ) उसका अघोष रूप है 1 जिह्वामूलीय जिह्वामूलीय और उपध्मानीय का भी वैदिक संस्कृत में प्रयोग रहा है । का उच्चारण ख़ की तरह था और उपध्मानीय का फ की तरह 1 वैदिक संस्कृत की ध्वनियों का यह संक्षिप्त वर्णन है । भारतीय आर्य भाषा-परिवार की भाषाओं के ध्वनि-समुदाय का ये ही मूल आधार है । १. ऋटुरषाणां भूर्द्धा । - अष्टाध्यायी, ११११९ वृत्ति २. वर्गाणां प्रथमतृतीयपंचमा पणश्चाल्पप्राणाः । ३. दर्गाणां द्वितीयचतुर्थौ शलश्च महाप्राणा।। -अष्टाध्यायी, ११११९ वृत्ति Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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