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इतिहास और परम्परा]
गोशालक
भिक्षु नहीं हैं, आजीवक' भिक्षु स्नान कर रहे हैं। विशाखा परिस्थिति समझ गई। बुद्ध जब भिक्षु-संघ के साथ उसके घर आए, उसने सारी घटना कह सुनाई और निवेदन किया'भन्ते ! नग्नत्व गहस्पिद और घृणास्पद है।'२
नियतिवाद की तरह गोशालक की एक अन्य मान्यता का नाम संसार-शुद्धिवाद है ; जिसके अनुसार चौदह लाख छासठ सौ प्रमुख योनियां हैं। पांच कर्म (पांच इन्द्रियों के) हैं। तीन कर्म (शरीर, वचन और मन) हैं । एक पूर्ण कर्म (शरीर या वचन की अपेक्षा से) है और एक अर्ध कर्म (मन की अपेक्षा से) है। बासठ मार्ग हैं । बासठ अन्तर कल्प हैं। छः अभिजातियां हैं। आठ पुरुष भूमियां, उनचास सौ व्यवसाय, उनचास सौ परिव्राजक, उनचास सी नाग-आवास, दो हजार इन्द्रियां, तीन हजार नरक, छत्तीस रजोधातु, सात संज्ञी गर्भ, सात असंज्ञी गर्भ, सात निर्ग्रन्थ गर्भ, सात देव, सात मनुष्य, सात पिशाच, सात सरोवर, सात सौ सात गांठ, सात सौ सात प्रताप, सात सौ स्वप्न हैं। चौरासी लाख महाकल्प हैं, जिनमें मूर्ख और पण्डित भ्रमण करते हुए सब दुःखों का अन्त करेंगे। यदि कोई कहे कि इस शील से इस व्रत से, इस तप से अथवा ब्रह्मचर्य से मैं अपरिपक्व कर्म को परिपक्व बनाऊंगा अथवा परिपक्व कर्म के फलों का उपभोग करके उसे नष्ट कर दूंगा, तो वह उससे नहीं हो सकेगा। इस संसार में सुख-दुःख इतने निश्चित हैं कि उन्हें परिमित द्रोणों (मापों) से मापा जा सकता है। उन्हें कम या अधिक नहीं किया जा सकता। जिस प्रकार कोई सूत का गोला फेंकने पर उसके पूरी तरह खुल जाने तक वह आगे बढ़ता जायेगा, उसी प्रकार बुद्धिमानों और मुखों के दुःखों का नाश तभी होगा, जब वे (संसार का) समग्र चक्र पूरा करके आयेंगे।"
अवलोकन पूज्यता और उसका हेतु
गोशालक के सिद्धान्त व विचार कुछ भी रहे हों, यह तो निर्विवाद ही है कि वे उस समय के एक बहुजन-मान्य और ख्याति-लब्ध धर्म-नायक थे। इनका धर्म-संघ भगवान् महावीर के धर्म-संघ से भी बड़ा था, यह जैन परम्परा भी मानती है।४ महावीर के दस श्रावकों की तरह इनके भी बारह प्रमुख श्रावक थे। बुद्ध का यह कथन भी कि "वह मछलियों की
१. आजीव स्यामी प्रति में आजीविक पाठ है। २. अंगुत्तर निकाय अट्ठकथा, १-७-२। 3. Rhys Davids Dialogues of Buddha, Vol. I, pp, 72-3; cf. G.P. Malalasekara, Dictionary of Pali Proper Names, Vol. II, pp. 398-93 दीघ निकाय, १-५३; मज्झिम निकाय, १-२३१, २३८, ४३८, ५१६; संयुत्त निकाय, १.६६, ६८, ३.२११, ४-३६८; अंगुत्तर निकाय, १-३३, २८६, ३.२७६, ३८४;
जातक, १-४३६, ५०६ । ४. अनुश्रुति के अनुसार गोशालक के श्रावकों की संख्या ११ लाख ६१ हजार थी, जबकि
महावीर के श्रावकों की संख्या १ लाख ५६ हजार थी। (कल्पसूत्र, सू० १३६)। ५. भगवती सूत्र, शतक ८, उद्देशक ५।
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