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________________ इतिहास और परम्परा] परिशिष्ट ४:प्रयुक्त-ग्रन्थ १३२. विनयपिटक अट्ठकथा (समन्तपासादिका) (७ खण्ड) : आचार्य बुद्धघोष, सं० जे० टाकाकुसु, मकोटो नगाई, प्र० पालि टेक्स्ट सोसायटी, लन्दन, १९४७ १३३. विनयपिटक अटुकथा (समन्तपासादिका) (२ भाग) : प्र० सं० डॉ० नथमल टांटिया, सं० वीरबल शर्मा, प्र. नवनालन्दा महाविहार, नालन्दा, १९६५ १३४. विनयपिटक पालि (त्रिपिटक) (५ खण्ड) : सं० भिक्षु जगदीश काश्यप, प्र० पालि प्रकाशन मण्ड न. नवनालन्दा महाविहार, नालन्दा, बिहार राज्य, १९५६ १३५. विनयपिटक (हिन्दी अनुवाद) : अनु० राहुल सांकृत्यायन, प्र० महाबोधि सभा, सारनाथ, बन रस, १६३५ १३६. ललित-विस्तर (बौद्ध संस्कृत ग्रन्थावली-१) : सं० डॉ० पी० एल० वैद्य, प्र० मिथिला विद्यापीठ, दरभंगा, १९५८ १३७. संयुत्तनिकाय अट्ठकथा (सारत्थपकासिनी) : आचार्य बुद्धघोष, सं० एफ. एल. वुडवार्ड, प्र. पालि टेक्स्ट सोसायटी, लन्दन, १९२६-१९३७ १३८. संयुत्तनिकाय पालि (त्रिपिटक) (४ खण्ड) : सं० भिक्ष जगदीश काश्यप, प्र० पालि प्रकाशन मण्डल, नवनालन्दा महाविहार, नालन्दा, बिहार राज्य, १९५६ १३६. संयुत्तनिकाय (हिन्दी अनुवाद) (भाग १, २) : अनु० भिक्ष जगदीश काश्यप, त्रिपिटकाचार्य भिक्ष धर्मरक्षित, प्र० महाबोधि सभा, सारनाथ, बनारस, १९५४ १४०. सद्धर्मपुण्डरीक सूत्रम् (बौद्ध संस्कृत ग्रन्थावली-६) : सं० डॉ० पी० एल० वैद्य, प्र० मिथिला विद्यापीठ, दरभंगा, १९६१ १४१. सुत्तनिपात अट्ठकथा (परमत्थजोतिका) (२ खण्ड) : आचार्य बुद्धघोष, प्र० पालि टेक्स्ट सोसायटी, लन्दन, १६१६-१६१८ १४२. सृत्तनिपात पालि (त्रिपिटक) (खुद्दक निकाय खण्ड १ के अन्तर्गत) : सं० मिक्ष जगदीश काश्यप, प्र० पालि प्रकाशन मण्डल, नवनालन्दा महाविहार, नालन्दा, बिहार राज्य, १९५६ १४३. सुत्तनिपात (हिन्दी अनुवाद सहित): अनु० भिक्षु धर्मरत्न, एम० ए०, प्र० महा बोधि सभा, सारनाथ, वाराणसी, (द्वितीय संस्करण), १९६० १४४. The Book of Discipline (Eng. Tr. of Vinava Pitaka(5 vols.): T by I. B. Horner, Pub. for Pali Text Society by Luzac & Co. London, (Second edition), 1949-1952 १४५. The Book of Gradual Sayings (Eng. Tr. of Anguttara Nikaya) Vols. I, II & V) : Tr. by F.L. Woodward; (vols. III & IV): Tr. by E.M. Hare, Pub. for Pali Text Society by Luzac & Co., London (Second edition), 1951-55 १४६. The Book of Kindred Sayings (Eng. Tr. of Samyutta Nikaya) (Vols. I & II) Tr. by Mrs. Rhys Davids; (Vols. III, IV & V): Tr, by F.L. Woodward, Pub. for Pali Text Society by Luzac & Co., London, (Second edition), 1950-56 ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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