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प्रथम-परिच्छेद ]
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हो गया, तब वह अभिनिवेश पूर्वक पुष्यमित्र के पास जाकर कहने लगा : प्राचार्य ने अन्यथा पढ़ाया है और तुम इसकी अन्यथा प्ररूपरणा करते हो । इस पर आचार्य पुष्यमित्र ने गोष्ठामा हिल को अनेक प्रकार से समझाया और उसकी मान्यता का खण्डन किया, फिर भी प्राचार्य का कथन उसने मान्य नहीं किया, इस पर अन्यगच्छोय बहुश्रुत स्थविरों को पूछा गया, तो उन्होंने भी पुष्यमित्र की बात का समर्थन किया। गोष्ठमाहिल ने कहा : तुम क्या जानते हो, तीर्थङ्करों ने वैसा ही कहा है. जैसा मैं कहता हूं। स्थविरों ने कहा : तुम पूरा जानते नहीं और तीर्थङ्करों का नाम लेकर उनकी प्राशातना करते हो। जब गोष्ठामाहिल अपने दुराग्रह से पीछे नहीं हटा, तब संघसमवाय किया गया। सर्व संघ ने देवता को लक्ष्य कर कायोत्सर्ग किया। जो भद्रिक देवता थी वह भाई और बोली : आदेश दीजिये क्या कार्य है ? तब उसे कहा गया : तीर्थङ्कर के पास जाकर उन्हें पूछो कि गोष्ठामा हिल का कहना सत्य है अथवा दुर्बलिका पुष्यमित्र प्रमुख संघ का। देवता ने कहा : मुझे बल देने के लिए कायोत्सर्ग करें, जिससे मेरे गमन का प्रतिघात न हो। संघ ने कायोत्सर्ग किया । देवता तीर्थङ्कर भगवन्त को पूछ कर आई और कहा : संघ सम्यक्वादी है और गोष्ठामाहिल मिथ्यावादी, यह सप्तम निह्नव है। इस पर गोष्ठामाहिल ने कहा : यह बेचारी अल्पद्धि देवता है। इसकी क्या शक्ति जो वहां जाकर पा सके। यह सब होने पर भी गोष्ठामाहिल ने संघ के कथन पर विश्वास नहीं किया, तब संघ ने उसे संघ से बहिष्कृत उद्घोषित कर दिया। गोष्ठामाहिल अपनी विरुद्ध प्ररूपणा की आलोचना प्रतिक्रमण किये बिना ही कालधर्म के वश हुना।
उपर्युक्त जमालि से गोष्ठामाहिल तक के सात मतप्रवर्तकों को पूर्वाचार्यों ने "निह्नव" कहा है और इनकी नामावलि "स्थानांग" और "प्रौपपातिक" उपांग में लिखी मिलती है, संभव है कि आगमों की युगप्रधान स्कन्दिलाचार्य द्वारा की गई वाचना के समय में निह्नवों के नाम आगमों में लिखे गये होंगे।
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