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________________ प्रयम-परिच्छेद ] [ ७ - भाचार्य श्रीगुप्त ने अपना खेलमात्रक रोहगुप्त के सिर पर फोड़ा और उसे निकाल दिया। राजा ने नगर में उद्घोषणा करवाई कि "बर्द्धमान जिन का शासन जयवन्त है" और पराजित रोहगुप्त को राजा ने अपने राज्य की हद छोड़कर चले जाने को प्राज्ञा दी। रोहगुप्त ने "मूल छः पदार्थों को पकड़ा, जैसे : द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय" । द्रव्य उसने नौ माने, "पृथ्वी, पानी, अग्नि, पवन, आकाश, काल, दिशा, प्रात्मा और मन ।" गुण उसने १७ माने हैं, जैसे : “रूप, रस, गन्ध, सर्श, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष और प्रयत्न।" कर्म पांच प्रकार का माना है : उत्क्षेपण, अवक्षेपण, प्राकुंचन, प्रसारण मौर गमन । सामान्य दो प्रकार का, “महासामान्य-सत्तासामान्य और सामान्यविशेष ।” विशेष अनेक प्रकार के माने हैं, 'इह' इस प्रकार के प्रत्यय का हेतु समवाय है। रोहगुप्त ने वैशेषिक दर्शन का प्रणयन किया, दूसरों ने आगे से आगे प्रसिद्ध किया। इसको मोलुक्य दर्शन भी कहते हैं, क्योंकि रोहगुप्त गोत्र से प्रौलुक्य थे। (७) भवद्धिक - गोष्ठामाहिल __ महावीर को सिद्धि प्राप्त हुए ५८४ वर्ष बीते तब दशपुर नगर में "प्रबद्धिक दर्शन" उत्पन्न हुआ, इसका विवरण नीचे लिखे अनुसार है : . दशपुर नगर में इक्षुघर में आर्यरक्षित के तीन पुष्यमित्र नामक साधु पोर गोष्ठामाहल आदि टहरे हुए थे। विन्ध्य नामक साधु पाठवें "कर्मप्रवादपूर्व" में लिखे अनुसार कर्म का स्वरूपवर्णन करता था, जैसे : "कुछ कर्म जीवप्रदेशों से बद्ध मात्र होता है, कालान्तर में वह जीवप्रदेशों से जुदा पड़ जाता है। कुछ कर्म बद्ध और स्पष्ट होता है, वह कुछ विशेष कालान्तर के बाद जुदा पड़ता है। कुछ कर्म बद्ध-स्पष्ट भोर निकाचित होता है जो जीव के साथ एकत्वप्राप्त होकर कालान्तर में अपना फल बताता है। विन्ध्य की यह व्याख्या सुनकर गोष्ठामाहिल बोला : कर्मबन्ध की ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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