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शुरु
[ १४ ! पृष्ठांक पंक्त्यङ्क ४२३ २ छोपा धर्मदास दीक्षा ४२३
अमीपाल ४२६ १६ बीच हुए शास्त्रार्थ ४२७ १
१८७८ ४२७६
१८७८ ४२८
पाटा बांधकर
४२८
हकमो
१२६
छीना दोक्षा प्रभोपाल बीच शास्त्रार्थ १७८७ सं० १७८७ पाय बांधकर हमको वहां मर्यादा में माये वक्तचन्द साधते सवरद्वार से विजयदेव ने नहीं न दे स्त्रा करले माथे दिवमें इष्टि ने पट्टघर सुतागमों की प्रस्तावनो जग्रपाल गरिण शकरसेन उन्मूनाचार्य सकने स्वास्तिसूरि गोविन्दवाचक कोष्टक के
४३० ४३१ ४३२ ४३२ ४३२ ४३२ ४३२
नहीं दे
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वहां न पाकर मर्यादा ३
में न आये १०
वखतचन्द
सांधते १३ संवरद्वार में १६ विजयदेव के २१ २२
स्त्री कर लें
माहे दिवसे
दृष्टि से १८
पट्टधर १ सुत्तागमे की प्रस्तावना १४ जयपाल गणि
शंकरसेन
उन्मनाचार्य २
सकते
स्वातिसूरि १५ गोविन्दवाचक
कोष्टक में
४३७
३३६
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३३६ ३३६ ३३६ ४४२
2.-".uru
४४२
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