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________________ [ पट्टावली-पराग - हैं या दिगम्बर सम्प्रदाय के ? 'षट्खण्डागम, कषाय-पाहुड" अथवा इनकी टीकाओं में इन बातों का कहीं भी सूचन तक न होने पर भी अतिश्रद्धावान् भक्त दिगम्बरों के आगमों को ईसा के पूर्व चतुर्थ शती में लिपिबद्ध होने और श्वेताम्बर सम्मत आगमों का पुस्तकों पर लेखन देद्धगणि क्षमाश्रमण का कहने वाले अपनी मान्यता पर विचार करेंगे, तो उनको अपनी खरी स्थिति का ज्ञान होगा। ___ मथुरा के स्तूप में से निकली हुई जैन-प्रतिमाओं के सम्बन्ध में कतिपय विद्वानों का कथन है कि वे दिगम्बर मूर्तियां हैं, कह कथन यथार्थ नहीं। क्योंकि भाज से २००० वर्ष पहले मूर्तियां इस प्रकार से बनाई जाती थीं कि गद्दी पर बैठी हुईं तो क्या खड़ी मूर्तियाँ भी खुले रूप में नग्न नहीं दिखती थीं। उनके वामस्कन्ध से देवदूष्य वस्त्र का अंचल दक्षिण जानु तक इस खूबो से नीचे उतारा जाता था कि आगे तथा पीछे का गुह्य अंग-भाग उससे पावृत हो जाता था और वस्त्र भी इतनी सूक्ष्म रेखाओं से दिखाया जाता था कि ध्यान से देखने से ही उसका पता लग सकता था। विक्रम की छठवीं तथा सातवीं शती की खड़ी जिनमूर्तियां इसी प्रकार से बनी हुईं अाज तक दृष्टिगोचर होती हैं, परन्तु उसके परवर्ती समय में ज्यों-ज्यों दिगम्बर सम्प्रदाय व्यवस्थित होता गया त्यों-त्यों उसने अपनी जिनमूर्तियों का अस्तित्व पृथक् दिखाने के लिए जिनमूर्तियों में भी प्रकट रूप से नग्नता दिखलाना प्रारम्भ कर दिया। गुप्तकाल से बीसवीं शतो तक की जितनी भी जिनमूर्तियां दिगम्बर-सम्प्रदाय द्वारा बनवाई गई हैं वे सभी नग्न हैं। मथुरा के स्तूप में से भी गुप्तकाल में बनी हुई इस प्रकार की नग्न मूर्तियों के कतिपय नमूने मिले हैं, परन्तु वे सभी विक्रम की आठवीं शती के बाद की हैं, कुषाणकाल की नहीं। मथुरा के स्तूप में से निकले हुए कई आयागपट्ट तथा प्राचीन जिनप्रतिमाओं के छायाचित्र हमने देखे हैं, उनमें नग्नता का कहीं भी प्राभास नहीं मिलता और यह भी सत्य है कि उन मूर्तियों के "कच्छ” तथा “अंचलि" आदि भी नहीं होते थे, क्योंकि श्वेताम्बर मूर्तियों की यह पद्धति विक्रम की ग्यारहवीं शती के बाद की है। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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