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________________ चतुर्थ-परिच्छेद ] .... [ ४६५ वाला अपने पास तक नहीं फटकेगा, न मपनी पेटपूजा ही सुख से होगी, इस कारण से लौंका के वेशधारी शिष्यों ने प्रतिमापूजा के विरोध के अतिरिक्त शेष सभी लौंका के उपदेशों को अपने प्रचार में से निकाल दिया, इतना ही नहीं, कतिपय बातें तो लौका के मन्तव्यों का विरोध करने वाली भी प्रचलित कर दी। भिक्षुत्रितय ने जिन 'सूत्रपाठों' को मूल में से हटा दिया है, उनको बनावटी कहकर अपना बचाव करते हैं । “गणधरों की रचना को हो ये मागम मानकर दूसरे पाठों को बनावटी मानते हैं, तब तो इनको मूल आगमों में से अभी बहुत पाठ निकालना शेष है। स्थानांग सूत्र और प्रोपपातिक सूत्र में सात निन्हवों के नाम संनिहित हैं, जो पिछला प्रक्षेप है, क्योंकि अन्तिम निन्हव गोष्ठामाहिल भगवान महावीर के निर्वाण से ५८४ वर्ष बीतने पर हुआ था, इसी प्रकार नन्दीसूत्र और अनुयोग द्वार में कौटिल्य,. कनकसप्तति, वैशेषिकदर्शन, बुद्धवचन, पैराशिकमत, षष्ठितन्त्र, माठर, भागवत, पातञ्जल, योगशास्त्र मादि अनेक अर्वाचीनमत और. ग्रन्थों के नामों के उल्लेख उपलब्ध होते हैं जिनका अस्तित्व ही गणधरों द्वारा की गई भागम-रचना के समय में नहीं था, इनको प्रक्षिप्त मानकर भिक्षुत्रितय ने पायमों में से क्यों नहीं निकाला, यह समझ में नहीं पाता। प्रक्षिप्त पाठ मानकर ही आगमों में से पाठों को दूर करना था तो सर्वप्रथम उपर्युक्त पाठों का निकालना आवश्यक था, अथवा तो अर्वाचीन पाठ वाले प्रागमों को अप्रमाणिक घोषित करना था सो तो नहीं किया, केवल "चैत्यादि के पाठों को सूत्रों में से हटाए," इससे सिद्ध है कि. बनावटी कहकर चैत्य-सम्बन्धी पाठों को हटाने की अपनी जबावदारी कम करने की चाल मात्र है । . . गणधर तीर्थङ्करों के उपदेशों को शब्दात्मक रचना में व्यवस्थित करके मूल आगम बनाते हैं और उन आगमों को अपने शिष्यों को पढ़ाते समय गणघर और अनुयोगधर चार प्रकार के व्याख्यानांगों से विभूषित कर पंचांगी के रूप में व्यवस्थित करते हैं। आगमों की पंचाँगी के नाम ये हैं - १ सूत्र, अर्थ २, ग्रन्थ ३, नियुक्ति ४ और ५ संग्रहणी। श्वाज भी ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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