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चतुर्थ-परिच्छेद ]
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___ये चारों ही पट्टावलियां प्राचार्य देवगिरिण क्षमाश्रमण पर्यन्त की हैं। इनमें गणधर सुधर्मा से लेकर नवमें पट्टधर प्राचार्य महागिरि तक के नाम सब में समान हैं, बाद के १८ नामों में एक दूसरे से बहुत ही विरोध है, परन्तु इसकी चर्चा में उतर कर समय खोना बेकार है।
पंजाब के स्थानकवासियों को पट्टावली में देवद्धिगरिण के बाद के १८ नाम छोड़ कर आगे के नाम निम्न प्रकार से लिखे हैं -
"४६ हरिसेन, ४७ कुशलदत्त, ४८ जीवनर्षि, ४६ जयसेन, ५० बिजयर्षि, ५१ देवर्षि, ५२ सूरसेनजी, ५३ महासेन, ५४ जयराज, ५५ विजयसेन, ५६ मिश्र(त्र)सेन, ५७ विजयसिंह, ५८ शिवराज, ५६ लालजीमल्ल, ६० ज्ञानजी यति ।
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