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[ पट्टावली-पराग
॥ १४ ॥ तत्पट्टै श्रीगुप्तास्वामी ॥१५॥ तत्पट्टे श्री श्रार्य मंगुस्वामी ॥१६॥ तत्पट्टे श्री सुधर्मस्वामी ॥१७॥ तत्पट्टे श्री वृद्धवादधरस्वामी ॥१८॥ तत्पट्टे श्री कुमुदचन्द्रस्वामी ॥१६॥ तत्पट्टे श्री सिंहगिरिस्वामी ॥२०॥ तत्पट्टे श्री वरस्वामी दशपूर्वधर, ॥ २१॥ तत्पट्टे श्री भद्रगुप्ताचार्य स्वामी, ॥२२॥ तत्पट्टे श्री आर्यनन्द स्वामी ॥२३॥ तत्पट्टे श्री श्रार्यनागहस्ती स्वामी ॥२४॥ ते वारे बीजी पट्टावलीगां सत्तावीसमे पार्ट देवर (धि) गरि जे सर्व सूत्र पुस्तके चढाव्या ते समस्थ ज. गव्यो, प्रार्थनागहस्ती, तत्पट्टे श्री रेवतस्वामी ॥ २५ ॥ तत्पट्टे श्री ब्रह्मदिन्नस्वामी ॥२६॥ तत्पट्टे श्री संडिलसूरि ॥२७॥ तत्पट्टे श्री हेमवन्तसूरि ॥२८॥ तत्पट्टे श्री नागार्जुनस्वामी ॥२६॥ तत्पट्टे श्री गोवन्दवाचक स्वामी ॥३०॥ तत्पट्टे श्री संभूतिदिनवाचक स्वामी, ॥३१॥ तत्पट्ट श्री लोहगिरिस्वामी ॥३२॥ तत्पट्ट श्री हरिभद्रस्वामी ॥३३॥ तत्पट्टे श्री सिलंगाचार्यस्वामी ॥३४॥
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तिवारपनी (छी ) १२ दुकाली जोगे पाट लोहडीवडी पोसाल मां चाल्या जात् पौसालिक धर्म प्रवत्यों । पौशालिक कालि माहात्मा नामघरवुई छै ॥ पाट ३३ | ३४ सूधी पूर्वधर छे, पछे पूर्व विद्या ढांको पोसाल प्रवति जातां जातां पाट १० । १२ पोसाल मां थया, तिखे समें सूत्रने ढांकी अनेरा दहेरा पोशालना माहातम ग्रन्थकरी पूजाsर्चा धर्म चलाग्यो, वीर पछी १२ सौं वर्षे देहरा प्रवर्त्य, जावत् महावीर पछी बेसहस्र वर्ष वुझों तिहां सूधी पौशाल धर्म प्रवर्तना थई | तेणे समें श्री गुजर देशें श्रणहल्लपुर पाटन में विषे मोटी पौशाल सूरी सूरपाट प्रवति थई, तेरणे समे ते नगरमां लोकासाह इस नामहं विवहारी वसे छे, जावत सिद्धवंत छे, लिखत कला छै, ते माटे एकदा समे सूरि सूरे सिद्धान्त परत जुनी थाई जांगी लका साहनें लिखवा दीधी, ते लिखतां वीरवांगी सिधांत जाण्यों १ परत पोती ने अर्थ लिखें १ परत सूरिसर ने लिखी देयें, एम करतां ३२ सूत्र लिख्यां, तेणे समे सूरिशरे जाण्यो ते पोतानी प्रति पर लिखे छै पर्छ भंडारमाथी लिखवा दीधी नहीं । पाटन ना भंडार मां ८४ सूत्र छै. बोजी श्रागमोक्त सर्व विद्यारण छै, परण ३२ सूत्र लकेताहि लिल्पांति श्रावक श्रागेवांची साधना गुण दिषाडे ॥ वीरवारणी ओलखाववे इत्र करतां केतलाक सूत्र रुचि
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