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[ पट्टावली-पराग
(६४) श्री जिनचन्द्रसूरि
आपकी स० १७११ में राजनगर में पद-स्थापना हुई, सं० १७६३ में सूरत बन्दर में स्वर्गवासी हुए । (६५) श्री जिनसुखसरि -
सं० १७५१ में दीक्षा, १७६३ में पदस्थापना हुई और संवत् १७८० में रीणी नगर में स्वर्गवास । (६६) श्री जिनमतिमूरि -
सं० १७८० में प्राचार्य-पद, सं० १८०४ में मांडवो बन्दर में स्वर्गवास । (६७) श्री जिनलाममूरि -
सं० १७९६ में जसलमेर में दीक्षा, १८०४ में प्राचार्य-पद, सं० १८३४ में स्वर्गवास। (६८) श्री जिनचन्द्रसूरि -
सं० १८२२ में दीक्षा, सं० १८३४ में पदस्थापना, १८५६ में सूरत में स्वर्गवास । (६६) श्री जिनहर्षसरि -
सं. १८४३ में दीक्षा, सं० १८५६ में पदस्थापना, १८६२ में ब्राह्ममुहूर्त में मंडोवर में स्वर्गवास । (७०) श्री जिनमहेन्द्रसरि -
सं० १८६७ में जन्म, १८८५ में दीक्षा, सं० १८६२ में जोधपुर महाराजा मानसिंहजो के राज्यकाल में प्राचार्य-पद । श्री पादलिप्तपुर में तपागच्छीय उपाश्रय के आगे होकर वादित्र बजाते हुए जिनमन्दिर में दर्शनार्थ गए।
श्री संघाधिप ने सपरिकर गुरु को अपने निवास स्थान पर बुलाकर स्वर्णमुद्राओं से नवांग पूजा की और दस हजार रुपया और पालकी संघ के
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