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[ पट्टावली-पराग
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रत्नसूरि प्रमुख अनेक प्राचार्य बनाने वाले, श्री जिनचन्द्रसूरि १५३० में जैसलमेर में स्वर्गवासी हुए, इनके समय में १५०८ में अहमदाबाद में लौंका नामक लेखक ने प्रतिमा-पूजा का विरोध किया; और सं० १५२४ में लौंका के नाम से मत प्रचलित हुना।
(५७) श्री जिनसमुद्रसरि -
१५२१ में दीक्षा, १५३० में श्री जिनचन्द्रसूरि द्वारा पदस्थापना पौर सं० १५५५ में अहमदाबाद में स्वर्गवास ।
(५८) श्री जिनहंससूरि --
सं. १५६५ में दीक्षा, सं० १५५५ में प्राचार्य-पद, सं० १५५६ में फिर विशेष पद महोत्सव, स० १५८२ में पाटन में स्वर्गवास, इनके समय में १५६४ में मारवाड़ में आचार्य शान्तिसागर ने प्राचार्यांय खरतरशाखा निकाली। (६६) श्री जिनमाणिक्यसरि --
सं० १५४६ में जन्म, १५६० में दीक्षा, सं० १५८२ में प्राचार्य-पद श्री जिनहंससूरि द्वारा, श्री जिनमारिणक्यसूरि कई वर्षों तक जैसलमेर में रहे। परिणामस्वरूप इनके सब साधु शिथिलाचारी हो गये, उधर प्रतिमोत्थापकों का मत बहुत बढ़ रहा था, यह देखकर मन्त्री संग्रामसिंह ने गच्छ की स्थिति ठीक रखने के लिए गुरु को अजमेर बुलाया, उन्होंने मन से तो क्रियोद्धार का संकल्प कर ही लिया था और कहा - प्रथम देराउल में श्री जिनकुशलसूरिजी की यात्रा करके फिर यहां से क्रियोद्धार करके विहार करूंगा। देराउल से माप वापिस जैसलमेर पा ही रहे थे परन्तु सं० १६१२ के भाषाढ़ शुक्ल ५ को आप का स्वर्गवास हो गया ।
(६०) श्री जिनचन्द्रसूरि .. ____ इनकी दीक्षा सं० १६०४ में, सूरि-पद १६१२ में, गच्छ में शिथिलाचारित्व देखकर सर्व परिग्रह का त्याग कर कर्मचन्द्र के प्राग्रह से बीकानेर
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