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________________ तृतीय-परिच्छेद ] [ २६५ विक्रमपुर से उच्चानगर जाने के रास्ते में अनेक भूतों का भय था, उसे हटाया। उच्चा के लोगों को प्रतिबोध देकर नवहर गए और वहां से त्रिभुवनगिरि । त्रिभुवनगिरि के राजा कुमारपाल को प्रतिबोध किया, शान्तिनाथ की प्रतिष्ठा करवाई। सं० १२०३ के फाल्गुन सुदि नवमी के दिन अजमेर में आपके हाथ से श्री जिनचन्द्रसूरि की दीक्षा हुई। सं० १२०५ के वैशाख शुक्ल षष्ठी के दिन विक्रमपुर में श्री जिनदत्तसूरिजी ने अपने पद पर जिनचन्द्रसूरि को प्रतिष्ठित किया और सं० १२११ के आषाढ़ वदि ११ को जिनदत्तसूरिजी अजमेर में स्वर्गवासी हुए। (७) श्री जिनचन्द्रसूरि - सं० १२१४ में जिनचन्द्रसूरि ने त्रिभुवनगिरि में श्री शान्तिनाथ के प्रासाद पर कलश-दण्ड-ध्वजारोहण किया। हेमदेवी गणिनी को प्रवर्तिनीपद दिया, फिर मापने मथुरा की यात्रा की। सं० १२१७ के फाल्गुन शुक्ल दशमी के दिन पूर्णदेवगणि जिनरथ, वीरभद्र, बीरजय, जगहित, जयशील, जिनभद्र और जिनपति प्रापके हाथ से दीक्षित हुए। इसी वर्ष में मरुकोट में चन्द्रप्रभ स्वामी के चैत्य पर वैशाख शुक्ल दशमी के दिन दण्डध्वज, कलशारोपण किया। ५०० पारुत्थ द्रम्म बोल कर सा० क्षेमंकर ने माला पहनी । सं० १२१८ के वर्ष में उच्चा नगरी में ऋषभदत्त, दिनयच द्र, विनयशील, गुणवर्धन, वर्धमानचन्द्र नामक ५ साधु और जगश्री, सरस्वती और गुणश्री नामक तीन साध्वियों की दीक्षा हुई। सं० १२२१ के वर्ष में सागरपट्ट में पार्श्वनाथचैत्य में देवकुलिका की प्रतिष्ठा की। अजमेर में जिनदत्तसूरि का स्तूप प्रतिष्ठित किया। बब्बेरक में गुणभद्रगणि, अभयचन्द्र, यशश्चन्द्र, यशोभद्र और देवभद्र को दीक्षा दी। देवभद्र की भार्या भी दीक्षित हुई। आशिका में नागदत्त को ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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