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________________ खरतर -बहद् - गुवक्लिी - श्रीजिनपालोपाध्यायादिसंकलिता - "खरतरगच्छ पट्टावली-संग्रह' के बाद हम "खरतरगच्छ बृहद् . गुर्वावली" का अवलोकन लिख रहे हैं। यह गुर्वांवली पूर्वोक्त प्रत्येक पट्टावली से बहुत बड़ो है। इसमें श्री वर्धमान सूरि जी से लेकर श्री जिनपद्मसूरि तक के खरतरगच्छोय १३ प्राचार्यो के वृत्तान्त दिए गए हैं । लेखक को प्रारम्भिक सहमंगल प्रतिज्ञा नीचे लिखे मुजब है - "वर्धमानं जिन नत्वा, वर्धमान-जिनेश्वराः । मुनीन्द्र - जिनचन्द्राख्याभयदेवमुनोश्वराः ॥१॥ श्रीजिनवल्लभसूरिः, श्रीजिनदत्तसूरयः ।। यतीन्द्रजिनचन्द्राख्यः, श्रीजिनपतिसूरयः ॥ २ ॥ एतेषां चरितं किश्चिन्मन्दमत्या यदुच्यते । वृद्धेभ्यः श्रुत (वेत्तृभ्य) स्तन्मे कथयत श्रृणु ॥३॥" लेखक कहते हैं - श्री वर्धमान जिन को नमस्कार कर श्री वर्धमान १, जिनेश्वर २, जिनचन्द्र ३, अभयदेव ४, जिनवल्लभ ५, जिनदत्त ६, जिनचन्द्र ७ प्रौर जिनाति ८, इन प्राचार्यो के चरित्र जो वृद्धों के मुख से सुने हैं, उ हें मन्दमति के अनुसार कहता हूं, हे शिष्य ! मेरे कथन को तू सुन । उपर्युक्त मंगलाचरण और प्रतिज्ञावचन किसी सामान्य लेखक के हैं। जिनपालोपाध्याय जैसे विद्वान् के ये वचन नहीं हो सकते। दो प्राचार्यों के लिए बहुवचनान्त प्रयोग केवल भद्दा ही नहीं, भ्रान्तिजनक भी है, ऐसा ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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