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द्वितोय-परिच्छेद ]
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पागे तर्क-शास्त्र है या नहीं ? दुर्गाच र्य ने कहाबौद्ध मत में इससे भी अधिक तर्क-शास्त्र है । सिद्ध वहां जाने को तैयार हुग्रा, गर्गर्षि ने कहा, बौद्धों के विद्यापीठ में जाने से श्रद्धाभंग हो जायगी । उसने कहा-कुछ भी हो मैं आपके पास वापिस मा जाऊँगा । वह गया और श्रद्धाहीन बनकर लौटा । दुर्गाचार्य ने बोध देकर फिर श्रद्धालु बनाया, फिर वह वहां गया, फिर पाया, दुर्गाचार्य उसको प्रतिबोध देकर ठिकाने लाये, तो फिर बौद्ध विद्यापीठ में गया, इस प्रकार बार-बार गमनागमन से तंग आकर गर्गाचार्य ने जयानन्दसू रि के परम्परा-शिष्य श्री हरिभद्राचार्य जो उस समय सबसे श्रेष्ठ श्रुतार थे, बौद्धमत के ज्ञाता और बुद्धिमान थे, उन्हें विज्ञप्ति को कि सिद्ध ठहरता नहीं है । हरिभद्र ने कहा -- कुछ भी उपाय करूगा। सिद्ध प्राया, समझया, पर ठहरता नहीं है, कहता है मैं अध्यापक प्राच यं को वचन देकर आया हूं। सो एक बार तो उनके पास जाऊँगा, तब आचार्य हरिभद्र ने "ललितविस्तरा' वृत्ति की रचना कर गर्गाचार्य को दो पौर वे स्वयं अनशन कर परलोक प्राप्त हुए । कालान्तर से सिद्ध वापस आया, गग चार्य ने "ललितविस्तरा" उसको पढ़ने के लिये दो। सिद्ध भी उसे पढ़कर प्राहंत मत का रहस्य समझा, बोला "अइपंडिग्रो हरिभद्दगुरू" हरिभद्र गुरु सर्वश्रेष्ठ विद्वान् हैं, जैन धर्म में वह दृढ़ हो गया और आत्मा को धर्म-भावना से वासित
करता हुमा, कठोर तप करता हुमा विचरने लगा। ४३ धोषेण, सिद्धाचार्य- पाच र्य दुर्गस्वामी वि० सं० ६०२ में परलोक
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