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विरहितम् ]
श्रीपार्श्वनाथस्तोत्रम् ।
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जाओ कलिंगदेसे भरणीए रत्तिकंत् पउमकरो । उड्ढमहो गहनाहो सहसकरो पणमए पासं ॥ ३ ॥ समदिदि सोमकंती चित्ताए जवणदेससंभूओ।। अमियकरो सोलकरो चंदो पणमेइ जिण पासं ॥ ४ ॥ अरुणो मालवभाए उत्तरसाढाइ उड्ढदिट्ठीए । नवकिरणो भूमिसुओ पणमइ पासं समुल्लासं ॥ ५ ॥ पीओ कडक्खदिट्ठी जाओ मगहे धणिटुरिक्खंमि । रोहिणिवल्लहतणओ पंचंसु बुहो नमइ पासं ॥ ६ ॥ नीलरुइ सम्मदिट्टी बारसकिरणो य सिंधुदेसभवो । उत्तरफग्गुणिजाओ सुरमंती नमइ जिण पास ॥ ७ ॥ जिट मरहट्ठ भूओ सोलसकिरणो कडक्खदिट्ठी य । गहभूओ असुरगुरू सुक्को सुक्को नमइ पासं ॥ ८ ॥ कसिणो सुरदेसे सत्तंसू रेवईइ अहिदिदी । सूरसुओ पणइपिओ पणमइ पासं सुणिभंतं ॥ ९ ॥ अहिदिदि कसिणकंती बब्बरकूलम्मि भरणिरिक्खम्मि । सिरमित्तो गहमल्लो राहू पणमेइ जिणपास ॥ १० ॥ जाओ पुलिंददेसे असले साए अणेगवण्णो य । अइकूर रुद्ददिदी सफणो केऊ नमइ पासं ॥ ११ ॥ इय गहगणपणयपयं पूयंति थुणंति जे जिणं पास । ते सिद्धिबुद्धिवररिद्धिसंजुया हुंति नरपवरा ॥ १२ ॥
+ नवप्रहस्तुतिः-ॐ आदित्य-सोम-मंगल-बुध-गुरु-शुक्र-शनैबरराहु-केतुप्रमुखाः खेचरा जिमपदपुरतोऽवतिवन्तु स्वाहा।