________________
विरहितम्] श्रीमल्लिजिनस्तवनम् ।
[११२] पञ्चकल्याणककलितैकविंशतिस्थानगर्भितं
श्रीमल्लिजिनस्तवनम् । पणयजणकप्पवल्लिं नियठाणविराजमाणसिवपल्लिं ।
कित्तियजियधवलमल्लिं थुणामि भावेण जिणमल्लिं ॥१॥ घात-सायरतित्तीसयठिइपमाण जिणु चविउ जयंतविमाणठाण ।
दीवाइमजंबुयदीवनामि भरहे मिथिलापुरि पवरगामि ॥२॥ अवयरिय कुम्भनरिंदलच्छि गुणतुल्लपभावइदेविकुच्छि । फागुणसियचउत्थि जिणाहिराज पयपंकयविलुलियदेवराज ॥ जिणमाया पिक्खइ दह चियारि गयपमुह सुमिण वरगिहमझारि ।
अवयरियउ जाणिय जिणवरिंदु विहसियतणुलोयणआणणिंदु ॥ जिण गम्भिहि ऊणय नव य मास पालिय तिहि नाणिहि घणपयास । सिएगारसि मग्गसिरम्मि मासि जायउ निणु अस्सणिमेसरासि ॥५॥ चलियासण जाणवि जिणह जम्मु दिसिकुमरिय निम्मइ निययकम्मु । जिण सविधिहिं सुविधिहि गुणह गातु निम्मइ हरिसिहि किरि अभिय पातु।। जाणवि जिणजम्मणु ओहिनाणि सुरगिरि सुर आवइ पवरठाणि । तित्थोदइ ण्हवइ मणह रंगि पूइवि जिणु गाइहि विविहभंगि ॥ ७ ॥ जम्मोच्छवु निम्मइ कुम्भराउ मग्गणजण पामइ घणपसाउ । पुरि घिरि घिरि मंगल गाइ बाल मणरंगिहि भंगिहि बहु विसाल । पूरवभवकम्मह समणुसारि संजाउ जिणेसरु पवरनारि । संठाविउ नामिहि देवु मल्लि कुम्भंकिय नालसु देहवल्लि ॥ ९ ॥
२४