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जैनस्तोत्रसन्दोहे
[अज्ञातकर्तृ
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देवदेवस्स जं छत्तं तस्स छत्तस्स जो झओ।
तेण छाएमि अप्पाणं मा मे हिंसंतु हिंसगा ॥२५॥ देवदेवस्स जं छत्तं तस्स छत्तस्स जो झओ ।
तेण छाएमि अप्पाणं मा मे हिंसंतु मूसगा॥२६ ॥ देवदेवस्स जं छत्तं तस्स छत्तस्स जो झओ।
तेण छाएमि अप्पाणं मा मे हिंसंतु मुग्गला ॥ २७ ॥ देवदेवस्स जं छत्तं तस्स छत्तस्स जो झओ।
तेण छाएमि अप्पाणं मा मे हिंसंतु गुज्झगा ॥ २८ ॥ पास सामि जो नमइ तिसंझं हल्लिसहि जम्मवि जाइ अवंझं ।
कमठमहासुरकयउवसग्गं झाडिअकोवं वंझं हंसं ॥२८॥ मुहि चंदप्पह हियइ जिणु मत्थइ पारिसनस्थ । ____ इणिं मुद्दिहिं मुद्दिउ को फेडणइ समत्थ ? ॥ ३० ॥ उरि मुद्रि सिरि मुद्रि पाय मुद्र ।................. । इणि मुद्रि मुद्रिउ हिंडइ चारि समुद्र ॥ ३१ ॥ संखिहि तूरिहि आहविभ सामिल ! दिनिअमुद्र । एअ दुलंघी कोइ न लंघइ पारसनस्थिअ मुद्र ॥३२॥
इति वैरोट्यास्तवः ।