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________________ ( ११२ ) जैनस्तोत्रसन्दोहे [ श्रीधर्मघोषसूरि रायगिहि विस्सभूई सत्तरसि (१७) अट्ठारसे महासुक्को (१८) । गुणवीसे पोअणपुरि तिविद्दु (१९) वीसे तमतमाए ( २० ) ॥ ६ ॥ पहु ! इगवी से सीहो (२१) पंकाइ दुवीसमम्मि (२२) तेवीसे । मूआपुरि पिअमित्तो चक्की ( २३ ) सोहम्मि चउवीसे (२४) ॥७॥ पणवीसे छत्तग्गाइ नंदणो (२५) पाणयम्मि छब्वी से (२६) । खत्तिअकुंडग्गामे सत्तावीसे महावीरो (२७) ॥ ८ ॥ मगसिरवइदसंमि वयं कत्तिअमावसि सिवं सिआसाढे । छट्टि चुइ विसाहदसमी नाणु भवो चित्ततेरसिए ॥ ९ ॥ इअ सिरिवीरजिणिंदो थुणिओ भत्तिन्भरनमिरदेविंदो । वरधम्मकित्तिविद्धिं विज्जाणं देउ मह सिद्धिं ॥ १० ॥ [ ४४ ] महामन्त्रगर्भितः अजितशान्तिस्तवः । सिरिरिसह - अजिअ - संभव - अभिनंदन - सुमइ सयप्पह - सुपासा । चंदपह - सुविहि-सीअल - सिजंस - वसुपुज्ज - विमल - णंता ।। १ । धम-संति - कुंथु - अर - मल्लि - सुवय - नमि- पास - वीर - तेवीसं । जिणपुंडरिआ पुंडरिअ पव्वए जत्थ समुसरिआ ॥ २ ॥ वासासु विहिअवासा सुविहिअसित्तुंजए असित्तुंजे । तहिं रिट्टनेमिणो रिट्टनेमिणो वयणओ जे उ ॥ ३ ॥ देविंदथुआ णि वरविज्जा णंदिसेणगणिवइणा । समयं वरमंतसधमकीत्तणा अजियसंतिजिणा ॥ ४ ॥
SR No.002613
Book TitleJainstotrasandohe Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1932
Total Pages662
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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