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जैनस्तोत्रसन्दोहे
( १०८ )
[ श्रीधर्मघोषसूरि
रयणपुरे आसि तुमं सिरिसेणनिवोऽभिनंदिआदइओ । पढमभवे (१) बीए पुण उत्तरकुरुजुअलिआ (२) दोवि ॥ २ ॥ सोहम्मसुरा तइओ (३) चउत्थए अमिअतेज - सिरिविजया । निवई मिह भयणिवई पंचमए पाणए अमरा (५) ॥३॥ छट्ठे सुमापुरी अपराइ अनंतविरअ बलविण्हू ( ६ ) । सत्तमए तं अच्चुअ इंदो इअरो पढमनरए ॥ ४ ॥ तो उब्वट्टि होउं विज्जाहरराय मेहना उत्ति । जाओ अच्चुयकप्पे सो तुह सामाणिओ देवो || ५ ||
तं विजाहर की अट्टम रयणसंचयाइ इमो । सहसाउ होउ तुह सुओ (८) नवमे दो तइ अगेविज्जे (९) ॥ ६ ॥
पुंडरिगणीइ चक्की भायरा मेहरह दढरहति ।
दस (१०) इक्कारसमे दुण्णि वि देवा उ सव्वट्टे (११) ॥७॥
चरमे पंचमचक्की संती सोलसाजणो गयउरे तं । चक्का हुत्ति इअरो सुओ गणहरो अ तुह पढमो (१२) ॥८॥
पोससिअमवमि नाणं तुह भद्दवबहुलसत्तमी चवणं । जिट्ठस्स बहुलतरसि जम्मसिवा चउदसीइ वयं ॥ ९॥ एवं देविंदमुदिवंदिओ संतिनाहतित्थयरो | ससहरसम्मकित्ती भवेउ भविआण संतिकरो ॥१०॥