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जैनस्तोत्रसन्दोहे
[ पूर्वाचार्य
पडिवज्जिय तुह सीलं सक्केमि न पालिउ न छड्डेउं ।। इय सामिय ! सच्चमिणं तं न य मरइ न मंचयं देइ ॥१६॥ उटुंति कहं ही संपइ तुह पहु ! जडा विवाएणं । सच्चमिणं ओहाणं ससएहिवि लहुडया लइया ॥१७॥ मुक्खत्थी सव्वजणो तुमं पुणो नाह ! देसि सिवसुक्खं ।
अक्खयमउलं तमिणं मिटुं विजेण विय दिवं ॥१८॥ • नरयप्पाउग्गं बंधिऊण पुच्छामि होमि किं पावो ।
एयं मुंडियमुंडस्स तं खु नक्खत्तपुच्छणयं ॥१९॥ इह लोए परिबद्धो होउं पहु ! नाहिउ भणिसु अहं । खीरं खंडं मिदं परलोयं केण पुण दिटुं ? ॥२०॥ तुह दिक्खं पडिवण्णो लज्जामि न नाह ! भिक्खभमणेणं । जइ नच्चणे पयट्टा ता किं धंघुट्टकरणेणं? ॥२१॥ जइ नाह ! तुह मयाओ लब्भइ मुक्खं किमन्नतित्थीणं । जइ किर घयं सुगंधं किमागयं गुब्बरस्स तहिं ? ॥२२॥ कम्मयत्था तुह देसणाइ न लहंति नाह ! पडिबोहं । सच्चमिणं तं जइ मरइ चिल्लओ तो न वेकरइ ॥२३॥ तुह वयभंगा सव्वा वि गंतुं निरयं सिवं पयाहिति । जाइस्सइ सग्गा नग्गखवणओ जइ परिविगुत्तो ॥२४॥ छजति तुझ मुणिणो चरणेण किं पुणोवि लद्धीहिं ? । वाईसइ मंकणिया किं पुण पयबद्धकिंकिणिया ॥२५॥ संसारदुक्खखिन्नो जणो तए वणियं च सिद्धिसुहं । इक्कं उम्माहार्य बीयं पुण मोरसंलवियं ॥२६॥